
फिलहाल उम्मीद से कहीं अधिक हुई आमदनी से सरकार को राजकोषीय घाटा कम करने में मदद मिले या न मिले लेकिन साल 2008 में दूरसंचार मंत्री ए राजा द्वारा औने-पौने दामों में की गई 2जी स्पेक्ट्रम नीलामी का जख्म भरने में मदद जरूर मिलेगी। इस नीलामी से सरकार ने करीब 70 हजार करोड़ के नुकसान का अनुमान लगाया था। कुल मिलाकर सरकार जहाँ 3जी और ब्रॉडबैंड वायरलेस एक्सेस से होने वाली आय का अनुमान 70 हज़ार करोड़ लगा रही है, वह वास्तव में मृगमरीचिका के समान है। क्योंकि 2008 की नीलामी से होने वाले वास्तविक घाटे को जोड़ा जाए तो सरकार न नफा- न-नुकसान वाली स्थिति में ही है। लेकिन फिर भी खुद को तसल्ली देने और अपने काबिना मंत्री कि कारगुजारियों पर पर्दा डालने के लिए सरकार इस नीलामी से मिलने वाली राशि को बड़ी उपलब्धि बता रही है। खैर सरकार चाहे जो कहे लेकिन साल 2008 की नीलामी में राजा ने जहाँ अपनी मनमानी से टेलिकॉम कम्पनियों को लाभ पहुँचाया वहीं सरकारी खजाने को चूना लगाने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। ये राजा की ही मेहरबानी थी की कई कम्पनियों ने बेहद सस्ती कीमत पर लाईसेंस पाकर अपने विदेशी साझेदारों को हिस्सेदारी बेचकर खूब मुनाफा कमाया। अब सरकार भले ही राजा की गलतियों पर पर्दा डालते हुए सरकारी खजाने के भरने का राग अलाप रही है, लेकिन सच्चाई पर पर्दा नहीं डाला जा सकता। राजा के कारनामों पर सरकार की प्रतिक्रिया देखकर तो यही लगता है की वो राजा की खामियों को छुपाने के लिए उम्मीद से ज्यादा आमदनी का ढिंढोरा पीट रही है, जबकि सच्चाई कुछ और ही है। फिलहाल इस पूरे मामले में सरकार के लिए ये पंक्तियाँ बिलकुल मुफीद हैं "इक बरहमन ने कहा है के ये साल अच्छा है, दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है..."