पिछले कुछ समय से एक बात है, जो लोगों के गले नहीं उतर रही, और उतरे भी कैसे...आख़िर लोगों की समझ में ये नहीं आ रहा है, कि आर्थिक और सांख्यिकी विभाग द्वारा हर सप्ताह जारी किए जाने वाले महंगाई दर के आंकडे तो ऋणात्मक हैं, लेकिन दूसरी तरफ़ यदि खाद्यान और रोजमर्रा कि जरूरतों वाली वस्तुओं पर नज़र डालें तो उनकी कीमतें लगातार आसमान छू रही हैं। भले ही ये बात अर्थशास्त्रियों और आर्थिक क्षेत्र के जानकारों को समझ आती हो, लेकिन कम से कम ये आंकडे एक आम आदमी कि समझ से तो परे हैं।
लगातार सात महीनों से थोक मूल्य सूचकांक शून्य से नीचे बना हुआ है, हालांकि महंगाई दर के इस तरह के आंकडे देखकर सरकार और रिज़र्व बैंक भी कम चिंतित नहीं हैं, लेकिन इन आंकडों के उलट दूसरी तरफ़ जो हकीकत है, उससे देश का हर आदमी परेशान है और यही सोच रहा है, कि आख़िर हर सप्ताह जारी किए जाने वाला महंगाई दर का आंकडा तो लंबे समय से शून्य से भी नीचे बना हुआ है, फिर आख़िर वस्तुओं के दाम क्यों नहीं कम हो रहे? वाकई ये सवाल एकबारगी हर किसी के मन में उठाना लाजिमी है।
क्या वाकई महंगाई दर कम हो रही है, या ये सिर्फ़ जनता को दिखाने के लिए आंकडों कि बाजीगरी है, क्योंकि पिछले कुछ समय से जिस तरह से खाद्य पदार्थों के दामों में तेज़ी आई है, उससे जनता को राहत मिलती नहीं दिख रही है।
अब सवाल यह उठता है, कि आख़िर इस विसंगति कि वजह क्या है? क्या सरकार जानबूझकर जनता को अंधेरे में रखना चाहती है, या इन आंकडों में सच्चाई है। वैसे जहाँ तक इस विसंगति कि बात कि जाए तो इसके पीछे जो ठोस कारण नज़र आता है, वो है महंगाई दर को मापने का सूचकांक।
भारत में महंगाई दर को मापने के लिए थोक मूल्य सूचकांक का सहारा लिया जाता है, तथा इसके आधार पर हर सप्ताह आंकडे जारी किए जाते हैं। इस सूचकांक का इस्तेमाल उन उत्पादों कि कीमत स्तर में परिवर्तन आंकने के लिए किया जाता है, जिनका कारोबार थोक बाजारों में होता है, जबकि अन्य कई देशों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर महंगाई दर कि गड़ना की जाती है। आंकडों और वस्तुओं के मूल्य में आई विसंगति का सबसे बड़ा कारण यही है कि थोक मूल्य सूचकांक में मात्र ४३५ वस्तुओं को शामिल किया गया है, जबकि उपभोक्ता इससे कहीं अधिक वस्तुओं का इस्तेमाल करते हैं। अतः इस आधार पर या तो सभी उपयोगी वस्तुओं को इसमें शामिल किया जाए, या फिर इसकी जगह उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर मुद्रास्फीति कि गड़ना कि जाए। थोक मूल्य सूचकांक में गिरावट की सबसे बड़ी वजह है, ईंधन और मेनुफक्च्रिंग, और यही कारण है, की महंगाई दर के आंकडे तो कम हैं, लेकिन वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं।
हालांकि सबसे विचारणीय प्रश्न यह है, कि महंगाई दर के ऋणात्मक होने के बावजूद रिज़र्व बैंक ने मौद्रिक नीति कि समीक्षा में कोई ठोस उपाय नहीं किए। सिर्फ़ अनुमान लगाया है कि २०१० में यह ५ फीसदी के करीब आ जायेगी। अब देखना है, कि रिज़र्व बैंक का यह अनुमान कितना सटीक बैठता है। हालांकि आम जनता को मुद्रास्फीति के आंकडों से कोई मतलब नहीं है, उसे तो बस आसमान छूती कीमतों की चिंता है। अगर सरकार उसे काबू में कर ले तो जनता को अवश्य राहत मिलेगी।
लगातार सात महीनों से थोक मूल्य सूचकांक शून्य से नीचे बना हुआ है, हालांकि महंगाई दर के इस तरह के आंकडे देखकर सरकार और रिज़र्व बैंक भी कम चिंतित नहीं हैं, लेकिन इन आंकडों के उलट दूसरी तरफ़ जो हकीकत है, उससे देश का हर आदमी परेशान है और यही सोच रहा है, कि आख़िर हर सप्ताह जारी किए जाने वाला महंगाई दर का आंकडा तो लंबे समय से शून्य से भी नीचे बना हुआ है, फिर आख़िर वस्तुओं के दाम क्यों नहीं कम हो रहे? वाकई ये सवाल एकबारगी हर किसी के मन में उठाना लाजिमी है।
क्या वाकई महंगाई दर कम हो रही है, या ये सिर्फ़ जनता को दिखाने के लिए आंकडों कि बाजीगरी है, क्योंकि पिछले कुछ समय से जिस तरह से खाद्य पदार्थों के दामों में तेज़ी आई है, उससे जनता को राहत मिलती नहीं दिख रही है।
अब सवाल यह उठता है, कि आख़िर इस विसंगति कि वजह क्या है? क्या सरकार जानबूझकर जनता को अंधेरे में रखना चाहती है, या इन आंकडों में सच्चाई है। वैसे जहाँ तक इस विसंगति कि बात कि जाए तो इसके पीछे जो ठोस कारण नज़र आता है, वो है महंगाई दर को मापने का सूचकांक।
भारत में महंगाई दर को मापने के लिए थोक मूल्य सूचकांक का सहारा लिया जाता है, तथा इसके आधार पर हर सप्ताह आंकडे जारी किए जाते हैं। इस सूचकांक का इस्तेमाल उन उत्पादों कि कीमत स्तर में परिवर्तन आंकने के लिए किया जाता है, जिनका कारोबार थोक बाजारों में होता है, जबकि अन्य कई देशों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर महंगाई दर कि गड़ना की जाती है। आंकडों और वस्तुओं के मूल्य में आई विसंगति का सबसे बड़ा कारण यही है कि थोक मूल्य सूचकांक में मात्र ४३५ वस्तुओं को शामिल किया गया है, जबकि उपभोक्ता इससे कहीं अधिक वस्तुओं का इस्तेमाल करते हैं। अतः इस आधार पर या तो सभी उपयोगी वस्तुओं को इसमें शामिल किया जाए, या फिर इसकी जगह उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर मुद्रास्फीति कि गड़ना कि जाए। थोक मूल्य सूचकांक में गिरावट की सबसे बड़ी वजह है, ईंधन और मेनुफक्च्रिंग, और यही कारण है, की महंगाई दर के आंकडे तो कम हैं, लेकिन वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं।
हालांकि सबसे विचारणीय प्रश्न यह है, कि महंगाई दर के ऋणात्मक होने के बावजूद रिज़र्व बैंक ने मौद्रिक नीति कि समीक्षा में कोई ठोस उपाय नहीं किए। सिर्फ़ अनुमान लगाया है कि २०१० में यह ५ फीसदी के करीब आ जायेगी। अब देखना है, कि रिज़र्व बैंक का यह अनुमान कितना सटीक बैठता है। हालांकि आम जनता को मुद्रास्फीति के आंकडों से कोई मतलब नहीं है, उसे तो बस आसमान छूती कीमतों की चिंता है। अगर सरकार उसे काबू में कर ले तो जनता को अवश्य राहत मिलेगी।