आप सभी का स्वागत करता है...

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Sunday, December 7, 2008

मंदी के पेनिक में मिला सरकारी टॉनिक

वैश्विक मंदी के कारण औद्योगिक सेक्टर में लगातार घट रही मांग को लेकर सरकार काफ़ी चिंतित नज़र आ रही है, यही वजह है की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए रिज़र्व बैंक और सरकार मिलकर साझा कदम उठा रहे हैं। एक ओर जहाँ रिज़र्व बैंक बाज़ार में मांग को बनाये रखने के लिए निरंतर तरलता बढ़ाने के उपाय कर रहा है, तो दूसरी ओर सरकार भी मांग की कमी से जूझ रहे सेक्टरों को राहत रुपी टॉनिक देने की शुरुआत कर चुकी है। रिज़र्व बैंक द्वारा रेपो दरों में की गई कटौती से बैंकों के लिए शार्टटर्म लोन सस्ता होगा जिससे बैंकों के पास नकदी बढेगी। इस नकदी को बैंक लोन बांटने के लिए यूज करेंगे और बाज़ार में कैश फ्लो बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि आने वाले समय में बाज़ार में तरलता बढ़ाने के लिए आर बी आई कुछ और नए कदम भी उठा सकता है। इसके साथ ही रिज़र्व बैंक ने रियलिटी सेक्टर को राहत पहुँचाने के लिए रियल इस्टेट लोन को री-एडजेस्ट करने का आश्वासन भी दिया है। उधर मंदी की मार से सबसे अधिक जूझ रहे ऑटो सेक्टर को बड़ी राहत देते हुए सरकार ने सेनवेट यानी सेंट्रल वेल्यु एडेड टैक्स में भी 4 फीसदी की कटौती की है। जिसके कारण अब भविष्य में गुड्स और सर्विसेस की कीमतों में कमी आने की संभावना के चलते ऑटोमोबाइल सेक्टर में निश्चित रूप से तेज़ी आने की उम्मीद बढ़ गयी है। निर्यात क्षेत्र को दी जाने वाली राहत के रूप में आगामी मार्च तक 2 फीसदी का इंटरेस्ट सब-वेंशन दिया गया है। इसके साथ ही टेक्सटाइल इंडस्ट्री की खस्ता हालत को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इस सेक्टर के लिए 1400 करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज को भी मंजूर किया है। महंगाई और मंदी से जूझ रहे आम आदमी के लिए सबसे बड़ा टॉनिक तो सरकार ने पेट्रोल और डीजल के दामों में कमी के रूप में दिया है। आख़िर देर से ही सही लेकिन अमेरिका और चीन के बाद भारत सरकार ने भी अपनी अर्थव्यवस्था को मंदी से उबारने के लिए पैकेज रुपी टॉनिक देना शुरू कर दिया है। प्रथम चरण में दिए गए वित्तीय पैकेज से एक्सपोर्ट, इन्फ्रास्ट्रक्चर, ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल सेक्टर्स को मजबूती मिलेगी। कुल मिलाकर मंदी के दौर से गुजर रहे सेक्टरों के लिए यह आर्थिक पैकेज किसी टॉनिक से कम नहीं। सरकार द्वारा उठाये जा रहे इन महत्वपूर्ण कदमों से आने वाले समय में महंगाई दर में कमी के साथ ही ग्रोथ रेट में इजाफा देखने को मिल सकता है।

Tuesday, December 2, 2008

एफडीआई रखेगा बरकरार, टेलिकॉम सेक्टर की रफ़्तार

आर्थिक मंदी के दौर में जहाँ धुरंधर सेक्टर कम हो रहे निवेश के चलते नुकसान झेल रहे हैं, वहीँ विश्व में तेज़ी से उभरता भारत का टेलिकॉम सेक्टर सरपट दौड़ रहा है। भारत को एक बड़े बिज़नस हब के रूप में देख रही विदेशी दूरसंचार कंपनियाँ लगातार यहाँ निवेश बढ़ाने को लेकर उत्सुक दिख रही हैं। विदेशी कम्पनियों की इस उत्सुकता का एक कारण भारत सरकार द्वारा हाल ही में दूरसंचार क्षेत्र में आने वाली नई कम्पनियों को लाईसेन्स देने की घोषणा भी है। इसके साथ ही वर्ष 2009 से थर्ड जेनरेशन सेवाओं को भी शुरू कर दिया जाएगा। इन सुविधाओं की घोषणा के बाद से ही विदेशी दूरसंचार कंपनियाँ भारत के टेलिकॉम सेक्टर में निवेश को लेकर खासी उत्साहित नज़र आ रही हैं। वैसे देखा जाए तो देश की बढ़ती जनसँख्या एक अभिशाप है, लेकिन टेलिकॉम सेक्टर की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को यही जनसँख्या एक वरदान के रूप में नज़र आती है। यही कारण है की दुनियाभर की टेलिकॉम कंपनियाँ भारत को एक बड़े टेलिकॉम हब के रूप में देखती हैं। आंकडों पर गौर करें तो वर्ष 2008 की शुरूआती दो तिमाहियों में टेलिकॉम सेक्टर ने लगभग 2 अरब डॉलर से भी अधिक का एफडीआई खींचा है। हाल ही में नार्वे की टेलिकॉम कम्पनी "टेलीनोर' ने यूनीटेक वायरलेस में 6120 करोड़ रुपये निवेश कर 60 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीद ली है। दूरसंचार मंत्रालय का मानना है कि आने वाले समय में और कई बड़ी टेलिकॉम कंपनियाँ भारत में निवेश करेंगी। इसके लिए सरकार घरेलू कम्पनियों को अपनी अधिक से अधिक हिस्सेदारी विदेशी कम्पनियों को बेचने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। मंत्रालय भारत के टेलिकॉम सेक्टर में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश बढ़ाने के उद्देश्य से ऐसे नियम लागू करने जा रहा है, जिससे कि जल्द से जल्द नए आपरेटरों को यहाँ अपनी सेवाएं शुरू करने में सुविधा हो। आने वाले समय में विडियोकान, स्वान, लूप जैसी कंपनियाँ टेलिकॉम सेक्टर में नई पारी खेलने जा रही हैं, जिसे देखते हुए लग रहा है कि मंदी के बाद भी भारत के दूरसंचार क्षेत्र में तेजी से निवेश बढेगा और भविष्य में भी टेलिकॉम सेक्टर कि रफ़्तार बरकरार रहेगी।

Wednesday, November 26, 2008

बड़े बेआबरू होके तेरे कूचे से हम...

केन्द्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के काबिना मंत्री को आतंकवाद के मुद्दे ने आखिरकार देर से ही सही लेकिन चारों खाने चित्त कर ही दिया। करीबन अपने 55 महीने के कार्यकाल में गृहमंत्री ने भले ही देश की सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान न दिया हो लेकिन कपड़े बदलने के मामले में तो उन्होंने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। अरे !!! ये मज़ाक नहीं सच है, आपकी याददाश्त के लिए बता दूँ की सितम्बर महीने की 13 तारीख को जब देश की राजधानी पर आतंकवादी कहर बरपा रहे थे तो हमारे गृह मंत्री (पूर्व) के माथे पर कोई शिकन नहीं थी। वे तो बस बेहतर से बेहतर दिखने के लिए कपड़े बदलने में मशगूल थे। धमाकों के समय उन्होंने महज पाँच घंटे में तीन बार कपड़े बदल डाले। न्यूज़ चेनलों में उनकी इस करतूत को सारे देश ने देखा। धमाकों के सिलसिले में चर्चा करने जब वे कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी से मिलने गए तो सफ़ेद सूट में नज़र आए, उसके ठीक दो घंटे बाद ही जब वे अपने निवास से लौटकर पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे तो यहाँ उनके सूट का रंग काला था। अरे भाई ! सिलसिला अभी थमा नहीं था, और तो और पत्रकारवार्ता के ठीक बाद जब वे घटना स्थल का जायजा लेने पहुंचे तो सफ़ेद सफारी में नज़र आए। मंत्री जी के इस तरह से कपड़े बदलने का राज कहीं ये तो नहीं कि वे भी क्रिकेटरों कि तरह किसी बड़ी कंपनी के कपडों का विज्ञापन कर रहे हों, मतलब बतौर ब्रांड एम्बेसडर। क्योंकि एक के बाद एक बदलते सूट जिस तरह से उनकी शोभा बढ़ा रहे थे उससे तो यही ज़ाहिर होता है। वैसे भी नेताओं का जलवा किसी क्रिकेट खिलाड़ी या फ़िल्म स्टार से कम नहीं है और यहाँ पर तो एक बड़े विभाग कि जिम्मेदारी सँभालने वाले एक काबिना मंत्री कि बात है...हो सकता है सूटिंग शर्टिंग कि किसी बड़ी कम्पनी ने उन्हें इस मौके पर अपने उत्पाद का प्रचार करने के लिए कहा हो...और इन्होने भी वक्त के तकाजे को पहचानते हुए उस वक्त को चुना, जब सारा देश उन्हें कपड़े बदलते हुए देख रहा हो। मतलब एक तीर से दो शिकार...विज्ञापन का विज्ञापन और लोगों के प्रति संवेदनाएं। लेकिन आतंकवादियों ने तो जैसे ये सोच लिए था कि आगे भी इन्हे इसी तरह के मौके दिए जायेंगे और हुआ भी यही...इस बार आतंकियों ने तारीख चुनी 26 ,महीना नवम्बर और शहर देश की व्यावसायिक राजधानी मुंबई । दिल्ली में हुए बम धमाकों के बाद एक बार फिर दहशतगर्दो ने देश को हिलाकर रख दिया। लेकिन इस बार गाज केवल मासूम और निर्दोष जनता पर ही नहीं गिरनी थी, बल्कि इसकी जद्द में अबकी बार इनकी सुरक्षा का जिम्मा थाम रहे पोशाक प्रेमी भी रहे। पिछले साढे चार साल से गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रहे गृह मंत्री जी अपने कार्यकाल में 22 से अधिक आतंकी हमलों और 900 से अधिक लोगों की मौत के गवाह बने। अकेले साल 2008 में ही आतंकियों ने 13 हमले कर डाले, और हमारे पोशाक-प्रेमी मंत्री जी बस कपड़े बदलने में ही मशगूल रहे। लेकिन अबकी बार आतंकवादियों के हौसलों ने चौतरफा आलोचना से घिरी केन्द्र सरकार को भी कठोर कदम उठाने पर मजबूर कर दिया, और अंततः हमारे पोशाक-प्रेमी मंत्री जी को अपना त्यागपत्र देना पड़ा। खैर जो होता है अच्छे के लिए ही होता है...अब तो वे खुलकर कपडों के विज्ञापन कर सकते हैं...और जब चाहें अपने कपड़े बदलने का शौक भी। ऐसे में ये पंक्तियाँ इन पर खूब फबेंगी। "बदलेंगे मनमाफिक कपड़े अब तो और मज़ा आएगा, न कोई टोकने वाला होगा और न दामन पे दाग आएगा"

Tuesday, November 25, 2008

मंदी आई है तो फिर दूर तलक जायेगी...

वैश्विक मंदी ने वैसे तो किसी भी सेक्टर को नहीं बख्शा है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर फाइनेंस और ऑटो सेक्टर्स में देखने को मिल रहा है। दुनिया में महाशक्ति कहलाने वाला अमेरिका इस मंदी से सर्वाधिक प्रभावित हुआ है, और वहां इस साल बंद होने वाले बैंकों कि संख्या बढकर 19 हो गई है। हालात यह है कि वहां के फिनान्सिअल सेक्टर में अब कर्मचारियों कि छंटनी का दौर शुरू हो गया है। अमेरिकी वित्तीय संस्थानों में बैंक ऑफ़ अमेरिका, इनवेस्टमेंट बैंक मोर्गन स्टेनली, लेहमन ब्रदर्स, मेरिल लिंच, जेपी मोर्गन चेज, गोल्डमन सेक्स, सिटी ग्रुप, फर्स्ट अमेरिकन कोर्प और दुनिया कि सबसे बड़ी म्यूचुअल फंड कम्पनी फिडेलिटी इनवेस्टमेंट जैसे दिग्गजों को भी अपना वर्क फोर्स कम करने को मजबूर होना पड़ा है। हाल ही में लॉस एंजेलेस स्थित सिक्यूरिटी पैसिफिक बैंक तथा ह्यूस्टन के फ्रैंकलिन बैंक के दिवालियेपन ने अमेरिका में छाए संकट के बादलों को और घना कर दिया है। उधर अमेरिकी मीडियाई बाज़ार को भी कमजोर विज्ञापन के चलते कर्मचारियों कि छंटनी करने को मजबूर होना पड़ रहा है। बात अगर यहीं तक हो तो फिर भी ठीक है, लेकिन मंदी के इरादे कुछ नेक नहीं लग रहे हैं, तभी तो ऑटो सेक्टर भी उसकी गिरफ्त से बच नहीं पाया है.....और अब हालात ये हैं कि वैश्विक ऑटो बाजार मंदी के कारण कारों कि मांग में भारी कमी देखने को मिल रही है, जिसके चलते अमेरिका कि सबसे बड़ी कार निर्माता कम्पनी भी दिवालिया होने कि कगार पर पहुँच चुकी है। हालांकि कम्पनी के प्रेजिडेंट ने दिवालियेपन से बचने के लिए सरकार से लोन गारंटी कि मांग उठायी है, लेकिन अमेरिका में राजनीतिक बदलाव के चलते ये मांग इतनी जल्दी पूरी होने के आसार कम ही नजर आ रहे हैं। खैर, इस वैश्विक मंदी ने दुनियाभर की वाहन निर्माता कम्पनियों कि रफ़्तार पर तो ब्रेक लगाया ही है...साथ ही कुछ कम्पनियों को तो बिकने कि कगार पर ला खड़ा किया है। ऐसे में जगजीत सिंह की गाई हुयी ग़ज़ल की पेरोडी सटीक बैठती है कि...मंदी आयी है तो फिर दूर तलक जायेगी...लोग बेवजह मंदी का सबब पूछेंगे...

Saturday, November 22, 2008

मंदी में भी काट रहे हैं चांदी

एक ओर मंदी ने जहाँ निवेशकों को खून के आंसू रोने पर मजबूर किया है, वहीँ दूसरी ओर यही मंदी प्रमोटरों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है। जनवरी से लेकर अब तक शेयर बाज़ार में गिरावट के चलते कई कम्पनियों के शेयर अर्श से फर्श पर आ गए हैं, जिसका लाभ उठाकर प्रमोटर्स अपनी ही कम्पनियों के शेयर औने-पौने दामों में खरीद रहे हैं। इससे प्रमोटरों को एक तीर से दो शिकार करने का बेहतर अवसर भी मिल गया है। एक तो ये की उन्हें अपनी ही कम्पनी में अधिक से अधिक हिस्सेदारी बढ़ाने का मौका मिला है और दूसरा ये की इस कदम से वे अधिग्रहण जैसे बाहरी खतरों को भी टालने में सफल होंगे।
खैर जो भी हो लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में कहीं न कहीं बाज़ार नियामक यानि सेबी के नियम भी मददगार साबित हो रहे हैं। कुछ दिनों पहले ही सेबी ने क्रीपिंग एक्विजिशन यानि रेंगती हुयी खरीदारी की सीमा को 55 प्रतिशत से बढाकर 75 प्रतिशत कर दिया है। ऐसे में अब कम्पनियों के प्रमोटर्स अपनी ही कम्पनी के शेयर कम से कम दाम पर खरीदकर मंदी में भी चांदी काट रहे हैं। वैसे कम्पनियों के प्रोमोटर्स भी पहुँची हुयी चीज़ हैं, क्योंकि वे जानते हैं की जब उनकी कम्पनियों के शेयर वास्तविक कीमत से कम पर उपलब्ध हैं, तो क्यों न इस सुनहरे अवसर को भुनाकर कम्पनी में अपनी हिस्सेदारी बढाई जाए।
वैसे जो भी हो लेकिन प्रमोटरों द्वारा उठाये जा रहे इस कदम का फायदा कहीं न कहीं आम निवेशक को भी मिलेगा, क्योंकि आमतौर पर माना जाता है कि अगर प्रमोटर्स अपनी ही कम्पनी में हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं तो उन्हें अपनी योजनाओं और कम्पनी के भविष्य पर पूरा भरोसा है। इसके कारण कम्पनी के शेयरों की कीमतों पर सकारात्मक असर पड़ेगा, जिसका सीधा लाभ कम्पनी के शेयर धारकों को होगा। यानी कुल मिलाकर गलती से ही सही लेकिन प्रमोटर्स कहीं न कहीं निवेशकों के हितों का भी ध्यान रख रहे हैं।

Saturday, November 1, 2008

विदेशी मुद्रा भण्डार बनाम सीआरआर

पिछले कुछ समय से बाज़ार में नकदी की समस्या दूर करने की लिए रिजर्व बैंक लगातार सीआरआर में कटौती कर रहा है। लेकिन क्या इस कटौती का कारण सिर्फ़ बाज़ार में तरलता बढ़ाना ही है? इस बार सीआरआर में की गयी 1 प्रतिशत की कमी का कारण भारतीय विदेशी मुद्रा भण्डार में आ रही गिरावट तो नहीं। एक समय था जब भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था, लेकिन पिछले कुछ समय से इसमें लगातार कमी आ रही है। वर्ष-2008 की बात करें तो पिछले आठ महीनों में यह 50 अरब डॉलर से भी अधिक गिर चुका है, कारण साल की शुरुआत से ही भारतीय शेयर बाज़ार की खस्ता हालत के चलते विदेशी संस्थागत निवेशकों ने अपना पैसा खींचना शुरू कर दिया, जिसके चलते डॉलर के मुकाबले रूपया कमजोर होने लगा। ऐसे में रुपये को मजबूती दिलाने के लिए रिज़र्व बैंक ने डॉलर बेचना शुरू कर दिया। यही कारण है कि पिछले कुछ समय से भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार कमी आ रही है। एक वक्त था जब भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार 300 अरब डॉलर से भी अधिक था, लेकिन टूटते रुपये को सहारा देने के लिए रिज़र्व बैंक को डॉलर बेचने जैसा कदम उठाना पड़ा और वर्तमान में यह घटकर 252 अरब डॉलर के आस-पास रह गया है। हालांकि रिज़र्व बैंक द्वारा डॉलर कि बिक्री का सकारात्मक परिणाम भी देखने में आया और डॉलर के मुकाबले रूपया कुछ हद तक सुधरा भी है। लेकिन डॉलर कि बिक्री ने सीआरआर में की गई कमी के कारण बाज़ार में आने वाली तरलता के असर को कम कर दिया। यही वजह है कि बाज़ार में पर्याप्त तरलता को बनाये रखने के लिए आरबीआई को एक बार फिर सीआरआर में कटौती करनी पड़ी है। खैर जो भी हो पर अब यह देखना दिलचस्प होगा कि गिरते विदेशी मुद्रा भण्डार को बढ़ाने और बाज़ार में लिक्विडिटी बनाये रखने के लिए केंद्रीय बैंक आख़िर क्या नए कदम उठाती है।

Tuesday, October 28, 2008

क्या घटेंगी पेट्रोल-डीजल की कीमतें?

अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें 17 महीने के निचले स्तर पर पहुँचने के बाद भी आख़िर पेट्रोलियम मंत्रालय पेट्रोल-डीजल के दाम क्यों नहीं घटा रहा है ? यह सवाल हर नागरिक के मन में जरूर उठ रहा होगा। इसी साल 147 डॉलर/बैरल के स्तर को छू चुका क्रूड अब 60 से 65 डॉलर/बैरल पर आ चुका है, लेकिन भारत सरकार की ओर से अब तक पेट्रोल की बढ़ी कीमतें घटाने पर कोई सकारात्मक और ठोस जवाब नहीं आया है। मंदी और महंगाई की मार झेल रहे उपभोक्ता को कच्चे तेल की कीमतों में कमी से एक आशा की किरण जगी है, लेकिन सरकार के कान पर अभी तक जूं नहीं रेंगी। यहाँ तक कि अब तो तेल कंपनियां भी कह चुकी हैं कि यदि क्रूड के दाम 70 से 75 डॉलर प्रति बैरल तक रहते हैं, तो उन्हें कोई घाटा नहीं होगा। लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार को ही अपना वादा याद नहीं है। जबकि पेट्रोलियम मंत्री ने ख़ुद एक बयान में कहा था कि अगर क्रूड का दाम 61 डॉलर/बैरल पर आएगा, तो हम पेट्रोल-डीजल कि कीमतों में कमी करेंगे। जहाँ तक विशेषज्ञों की बात है तो उनका कहना है कि आर्थिक उठापटक के बीच क्रूड के दाम में तेजी कि उम्मीद कम ही है, और अगर अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से कमजोर आर्थिक आंकडे आते हैं तो कच्चे तेल के दाम और नीचे जा सकते हैं। कुल मिलाकर सभी चीजें सकारात्मक हैं तो फिर आख़िर सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाने में इतनी देरी क्यों कर रही है? तेल की कीमतों में गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए तो बेहतर है, लेकिन ये बेहतरी तभी होगी, जब जनता के लिए पेट्रोल-डीजल के दामों में कमी की दरकार.....पूरी करेगी सरकार...

Sunday, October 26, 2008

बड़ी कंपनियों कि नज़र अब छोटी कारों पर

यदि आप कार लेने का मन बना रहे हैं तो अब आपको ज्यादा सोचने की जरूरत नही पड़ेगी। भारत में छोटी कारों के बड़े बाज़ार को देखते हुए कई ऑटो कंपनियों की नज़रें अब इनके निर्माण पर लगी हैं। यही कारण है कि टाटा की नैनो से लेकर आने वाले समय में कई जानी-मानी कंपनियां अपनी छोटी कारें बाज़ार में उतारने जा रही हैं। जहाँ तक अनुमान है की इस साल के अंत तक टाटा की नैनो सड़कों पर फर्राटा दौडेगी। वहीँ होंडा मोटर्स भी अगले साल के आखिरी तक अपनी छोटी कार मार्केट में उतरने का मन बना चुका है, और इसके लिए राजस्थान में तेज़ी से काम चल रहा है। हिंदुजा समूह का ब्रांड अशोक लेलैंड भी भारतीय बाज़ार में अपनी पकड़ बनने में लगा हुआ है और इसी के चलते छोटी कारों के निर्माण कि योजना बना रहा है। जापानी ऑटो कंपनी निसान मोटर्स भी वर्ष-2010 तक नेक्स्ट जेनरेशन कार "मार्च" लॉन्च करने का मूड बना चुकी है। शुरूआती चरण में इस कार का निर्माण थाईलैंड से होगा। लेकिन आगे चलकर कंपनी कार के कलपुर्जे और मेनुफेक्ट्चरिंग का काम भारत से ही करेगी। इसी साल ब्रिटेन कि ऑटो कंपनी फोर्ड मोटर्स भी भारतीय बाज़ार में अपनी छोटी कार उतारने का मन बना रही है। कंपनी भारत के ऑटोमोबाइल सेगमेंट में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहती है।

Friday, October 24, 2008

बाज़ार में छाया साईको फोबिया

आर्थिक मंदी और शेयर बाज़ार में लगातार जारी गिरावट के चलते अब निवेशक ही नहीं बल्कि आम आदमी के जेहन में भी यह सवाल कौंधने लगा है कि आख़िर कहाँ जाकर थमेगी ये मंदी और कब लौटेगी बाज़ार में रौनक। एक ओर हर तरह के उपाय करने के बाद भी मार्केट में लिक्विडिटी नहीं आ रही है, तो दूसरी ओर डॉलर के मुकाबले रूपया टूट रहा है। रिज़र्व बैंक द्वारा क्रेडिट पॉलिसी कि दूसरी तिमाही कि समीक्षा के बावजूद बाज़ार में मारकाट मची हुयी है। इसका एक कारण ये भी हो सकता है कि ब्याज दरों को स्थायी रखा गया है। हालांकि उम्मीद यही थी कि रेपो और सीआरआर की दरों में और कटौती होगी लेकिन रिज़र्व बैंक ने इस बार सभी आयामों को देखते हुए हर कदम फूँक-फूँक कर रखे हैं। बाज़ार में लिक्विडिटी बढ़ाने और बैंकों को नकदी देने के चक्कर में कहीं आरबीआई मुसीबत में न फँस जाए। इसके साथ ही केंद्रीय बैंक को बढ़ती हुयी महंगाई की चिंता भी तो सता रही है। अगर ब्याज दरों में अधिक कटौती कर दी तो कुछ हद तक महंगाई पर लगी लगाम फिर छूट सकती है। कुल मिलाकर सरकार और आरबीआई एक संतुलन बनाकर मंदी और महंगाई दोनों से लड़ने का उपाय तो कर रही हैं, लेकिन लोगों के मन में घर कर गए मनोवैज्ञानिक डर को दूर करने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है, यह विचारणीय है।

Wednesday, October 22, 2008

आईपीओ मतलब.......कोका-कोला

निवेशकों के लिहाज से वर्ष 2007 काफ़ी अच्छा रहा...जब मार्केट अपने पूरे शबाब पर था, लेकिन 2008 शुरू होते ही नतीजे एकदम उलट....निवेशकों ने होम किया और हाथ जले....अरे भई ये तो कहावत है...पर है बिल्कुल सच। लोगों ने सोचा शेयर मार्केट में सीधे घुसना रिस्की है.....तो चलो आईपीओ एक बेहतर विकल्प है...लेकिन भई जब ख़राब वक्त आता है...तो ऊंट पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट जाता है...और वही हुआ। 2008 में जितनी भी कंपनियों के आईपीओ आए वे अपने इश्यू प्राइस से नीचे ही खुले...और अगर किसी तरह वो शुरूआती दौर में ऊपर भी खुले तो मार्केट ने उन्हें अपने लपेटे में ले ही लिया। एक स्टडी के मुताबिक 123 में से 102 कंपनियों के भाव इश्यू प्राइस से भी नीचे हैं। हालात ये हैं...कि कुछेक कंपनियों का बाज़ार पूंजीकरण तो आईपीओ से जुटाई गयी रकम से भी कम हो गया है। इस मंदी ने किसी को भी नही छोड़ा.....चाहे फिर राजा हो या रंक...कहने का मतलब है कि नुकसान सिर्फ़ छोटी कंपनियां ही नहीं झेल रही हैं...बड़ी-बड़ी दिग्गज कंपनियां भी इसमे शामिल हैं....जिनका बाज़ार पूंजीकरण अरबों रुपये में हैं। आईपीओ बाज़ार का अंदाजा हम इसी बात से लगा सकते हैं...कि ऑइल इंडिया लिमिटेड ने फिलहाल आईपीओ लाने का इरादा टाल दिया है। कुल मिलकर लगता है कि आईपीओ मतलब कोका-कोला...

Sunday, October 19, 2008

निवेशक का निकला दिवाला

बाज़ार में जारी बवंडर और महंगाई ने दिवाली से पहले ही निवेशक का दिवाला निकाल दिया है। एक समय था जब आम आदमी तो आम बल्कि कुत्ते बिल्ली भी निवेश की बातें करने लगे थे। हालत ये थे की जिधर देखो उधर शेयर मार्केट में इनवेस्टमेंट की बातें। और हों भी क्यों ना....आखिर मार्केट भी तो ट्रांस रेपिड ट्रेन की तरह सरपट दौड़ रहा था। और हर कोई बाज़ार की इस तेजी का लाभ उठाना चाहता था। जिसे देखो वही बहती गंगा में हाथ धोने को तैयार था। डीमेट अकाउंट खुलवाने की होड़ सी लग गई थी, जिसे देखो वही शेयर बाज़ार में किस्मत आजमाने को बस नहा-धोकर तैयार था। नफे-नुक्सान के बारे में सोचे बिना बस उस पर तो बाज़ार की तेजी से पैसा कमाने का जूनून सवार था। शायद उसे यह भी भान नहीं की जिस काम को वो करने जा रहा है....वो भी एक वैध जुआं ही है। उसने तो बस भेडचाल में आकर अपनी गाढी कमाई से कुछ शेयर खरीदे तो कुछ म्यूचुअल फंड, किसी ने इसे यूलिप योजनाओं में लगाया। मतलब कुल मिलाकर ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में कुछ ने तो अपनी एफडी तोडकर तो कुछ ने बैंकों से क़र्ज़ लेकर शेयर मार्केट में हाथ आजमाए। लेकिन नतीजा वही निल बटे सन्नाटा और सिर मुंडाते ही ओले पड़ने वाली कहावत चरितार्थ हो गई.....कैसे ? अरे भई ऐसे की पैसा निवेश करते ही बाज़ार ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया....और निवेशकों को दिन में तारे नज़र आने लगे। लेकिन अब भी निवेशक मजबूती के साथ अडा रहा। उसे लगा की ये छोटी मोटी गिरावट तो लगी ही रहती है। अब हमेशा ही किसी का प्रदर्शन तो बेहतर नही होता न......यही सोचकर वह अपने मन को दिलासा देता रहा। लेकिन भइया इस बार शेयर मार्केट गिरगिट की तरह रंग नही बदल रहा था, बल्कि वह तो अपना असली रूप दिखा रहा था। अब अगर निवेशक ही उसकी मंशा नहीं समझ पा रहा था, तो इसमे भला मार्केट का क्या दोष। अरे भइया मैं कोई मार्केट का पक्षधर नहीं हूँ, पर मार्केट को पूरी तरह से दोषी ठहराना भी तो उचित नहीं है। अब अगर गुब्बारे में हवा भरती जाए.....भरती जाए.....तो आख़िर वो फटेगा ही और वही हुआ.....भी। खैर... आख़िर धीरे-धीरे ही सही अब निवेशक को मार्केट की चाल समझ आने लगी...और वो इससे निकलने या दूर रहने का मन बनाने लगा पर भई अब तो काफ़ी देर हो चुकी थी...और बाज़ार ने खूब मारकाट मचाई। या यूँ कहें की दिवाली से पहले ही मार्केट ने निवेशकों का दिवाला निकाल दिया। लेकिन हमारा निवेशक भी कम होशियार नही है...अब वह निवेश करने में फूँक-फूँक कर कदम रख रहा है...और रखे भी क्यों ना......दूध का जला हुआ, छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है।

मंदी की सुनामी में लुटे कुबेरपुत्र

अमेरिका में पैदा हुए आर्थिक संकट ने सारी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। भारतीय उद्योगपतियों की संतानें भी इससे अछूती नहीं हैं। जनवरी से लेकर अब तक जिस तरह से बाज़ार बेकफुट पर आया है, उसमे बड़े-बड़े धनकुबेरों की संतानें भी अपनी करोड़ों की संपत्ति स्वाहा कर चुकी हैं...पिछले दस महीनों में ये कुबेरपुत्र लगभग 5352 करोड़ रुपये गंवा चुके हैं। इनमें सबसे अधिक पैसा डी एल एफ के मालिक के पी सिंह की बेटी पिया ने गंवाए हैं। उन्होंने 3297 करोड़ रुपये हैं। जबकि उनके भाई तथा डी एल एफ के वाइस चेयरमैन राजीव सिंह 1586 करोड़ रुपये स्वाहा कर चुके हैं। यूनिटेक के मालिक रमेशचंद्र के पुत्र राजीव चंद्र ने इस मंदी रूपी सुनामी में 2930 करोड़ रुपये गंवाए हैं। रिलायंस के मालिक मुकेश अम्बानी की संतानें ईशा , आकाश और अनंत ने जहाँ 685 करोड़ डुबाये हैं, वहीँ अनिल अम्बानी के पुत्र जय और अनमोल ने भी अपने पापा की 137 करोड़ की पूंजी गँवाई। विप्रो के मालिक अजीम प्रेमजी के पुत्र रिषद प्रेमजी भी इस मामले में पीछे नहीं है। उन्होंने अब तक १४ करोड़ स्वाहा किए हैं...

Friday, October 17, 2008

सेंसेक्स बनाम सचिन

क्रिकेट की दुनिया में जीती-जागती किवदंती बन चुके सचिन ने आखिरकार लारा का रिकॉर्ड ध्वस्त कर ही दिया...लंबे समय से लोग ११९५३ आंकडे को पार करने की बाट जोह रहे थे...तो लो भई सचिन ने सबकी मुराद पूरी कर दी....पर भइया ये तो कुछ भी नही.....अपना सेंसेक्स भी आंकडे पार कर रिकॉर्ड तोड़ने में किसी से कम नहीं...तभी तो दिन-ब-दिन नए रिकॉर्ड बन रहे हैं...फर्क सिर्फ़ इतना है की सचिन रिकॉर्ड तोड़कर आगे बढ़ रहा है...जबकि सेंसेक्स रिवर्स गियर से पीछे आ रहा है...लेकिन भइया कहीं न कहीं दोनों में समानता तो है....कैसे ? वो ऐसे....कि एक समय था जब अपने सचिन सेंचुरी पर सेंचुरी लगा रहे थे....सेंसेक्स भी उन्ही का अनुसरण कर रहा था....और अब वो वक्त है...कि सचिन का बल्ला जब कभी बोलता है....तो अपना सेंसेक्स भी कभी-कभार सिर उठाता है...अपना शेयर बाज़ार तो पूरी तरह सचिन के नक्शे कदम पर चल रहा है...सचिन कभी गेंदबाजों के छक्के छुडाते थे...तो सेंसेक्स अब निवेशकों के...कुल मिलाकर दोनों का काम एक जैसा ही है...अब देखिये न उधर सचिन ने लारा का रिकॉर्ड तोडा तो इधर सेंसेक्स ने भी १० हज़ार का रिकॉर्ड तोड़ ही दिया...जिस तरह से सचिन के १९ साल के क्रिकेट जीवन में उतार-चढ़ाव आए...लगता है...सेंसेक्स भी अब उसी दौर से गुजर रहा है...पर भाई....जो भी हो....लगता है दोनों के ग्रह-गोचर समान हैं....अरे!!!!! भई राशि नाम का अक्षर भी तो वही है ना...

Friday, October 10, 2008

झुकी-झुकी सी नज़र...

झुकी-झुकी सी नज़र बेकरार है के नहीं...

दबा-दबा सा सही दिल में प्यार है के नहीं...झुकी-झुकी सी नज़र...

तू अपने दिल की जवां धडकनों को गिन के बता...

मेरी तरह तेरा दिल बेकरार है के नहीं....दबा-दबा सा सही.....

वो पल के जिसमे मोहब्बत जवान होती है...

उस एक पल का तुझे इंतज़ार है के नहीं...दबा-दबा सा सही....

तेरी उम्मीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को...२

तुझे भी अपने पे ये ऐतबार है के नहीं...दबा-दबा सा सही...

झुकी-झुकी सी नज़र....

चिट्ठी न कोई संदेश...

चिट्ठी न कोई संदेश, जाने वो कौन सा देश...जहाँ तुम चले गए...
इस दिल पे लगाके ठेस...जाने वो कौन सा देश...जहाँ तुम चले गए...

इक आंह भरी होगी, हमने न सुनी होगी...जाते-जाते तुमने आवाज़ तो दी होगी....
हर वक्त यही है ग़म, उस वक्त कहाँ थे हम...कहाँ तुम चले गए...

हर चीज़ पे अश्कों से लिखा है तुम्हारा नाम, ये रस्ते घर गलियां तुम्हे कर न सके सलाम...
हाय दिल में रह गई बात...जल्दी से छुडाकर हाथ कहाँ तुम चले गए....

अब यादों के कांटे इस दिल में चुभते हैं, न दर्द ठहरता है...न आंसू रुकते हैं...
तुम्हे ढूंढ रहा है प्यार...हम कैसे करें इकरार...के हाँ तुम चले गए...

फरियाद...

कोई फरियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे......
तूने आंखों से कोई बात कही हो जैसे...
जागते-जागते इक उम्र कटी हो जैसे...
जान बाकी है मगर साँस रुकी हो जैसे......
जानता हूँ.....आपको सहारे की जरूरत होगी....बस साथ देने आया हूँ...
हर मुलाक़ात पे महसूस यही होता है...
मुझसे कुछ तेरी नज़र पूछ रही हो जैसे...

राह चलते हुए अक्सर ये गुमा होता है...
वो नज़र छुपके मुझे देख रही हो....जैसे...

एक लमहे में सिमट आया हो सदियों का सफर...
ज़िन्दगी तेज़ बहुत तेज़ चली हो...जैसे...

इस तरह पहरों तुझे सोचता रहता हूँ मैं...
मेरी हर साँस तेरे नाम लिखी हो...जैसे...

Wednesday, October 8, 2008

आख़िर कब रुकेगी मंदी रुपी सुनामी...

विश्व भर में आई मंदी के चलते वित्तीय संस्थानों की माली हालत काफ़ी खस्ता हो चुकी है। हाल ही में दिवालिया घोषित हुए लेहमन ब्रदर्स उनमे से एक थी। इस वैश्विक मंदी का असर भारत में भी साफ़ दिखाई दे रहा है। बम्बई स्टॉक एक्सचेंज का संवेदी सूचकांक 21000 से लुढ़ककर 10700 के स्तर को भी छू चुका है। वर्ष के शुरूआती दौर से ही शेयर बाज़ार मंदी की मार झेल रहा है, लेकिन यह मंदी थमने का नाम नही ले रही है। कभी क्रूड आयल के उबलने से तो कभी डॉलर के बढ़ने से बाज़ार लगातार मंदी की चपेट में है। कुल मिलाकर तेजड़ियों पर मंदडिए हावी हैं, जिसके चलते कई शेयर ब्रोकर इस मंदी रुपी सुनामी की भेंट चढ़ चुके हैं। ये हालात भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में देखने को मिल रहे हैं। हाल ही में अमेरिका के एक ब्रोकर ने परिवार सहित आत्महत्या कर ली। अपने आप को विश्व का आका कहलाने वाला अमेरिका और अंकल सैम भी इस मंदी को रोकने में नाकाम साबित हो रहे हैं। हालांकि अमेरिकी सरकार ने इस मंदी रुपी सुनामी को रोकने के लिए 7 सौ अरब डॉलर का राहत पैकेज जारी किया है, लेकिन यह पैकेज 12 हजार अरब बिलियन डॉलर की जीडीपी वाले देश के लिए ऊँट के मुह में जीरे के समान है।

Wednesday, August 27, 2008

और महंगा होगा हवाई सफर

पिछले दो सालों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दामों में हो रही बढोतरी के चलते विमान कंपनियां ए टी एफ यानी विमान ईंधन की कीमतों में हुयी कमी के बावजूद किराया बढ़ाने पर विचार कर रही हैं। बीते कुछ समय से कच्चे तेल की कीमतें १५० डॉलर/बैरल तक पहुँच गई थी, जिसकी वजह से विमानन कंपनियों को काफ़ी नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि अब कच्चे तेल की कीमतों में कमी देखी जा रही है, लेकिन विमानन कंपनियों का कहना है कि अब तक हुए नुकसान कि भरपाई के लिए एक बार फिर किराया बढ़ाने कि जरूरत है।
गौरतलब है कि पिछले चार वर्षों में विमान ईंधन के दामों में ५०,००० रुपए/ किलोलीटर तक का इजाफा हो चुका है। जिसके चलते एयर इंडिया , किंगफिशर , स्पाइसजेट तथा जेट एयरवेज जैसी प्रमुख कंपनियां हवाई किराये में १०-१५ फीसदी की वृद्धि कर सकती हैं। यह बढोतरी संभवतः दो चरणों में सितम्बर-अक्टूबर तक होने कि संभावना है।

Thursday, August 21, 2008

एफ़ आई आई खींच सकते हैं पैसा

भारत में बढती महंगाई, राजनीतिक उठापटक और ख़राब नीतियों के चलते देश की राजकोषीय स्थिति बदतर होती जा रही है, जिसके चलते विदेशी संस्थागत निवेशक (एफ़ आई आई) भारतीय बाज़ार से अपना पैसा निकालने का मन बना रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय एजेन्सी फ़िच की मानें तो केन्द्र सरकार का घाटा वर्ष २००८ में जीडीपी का २.८ फीसदी था, जो कि वित्त वर्ष २००९ में सकल घरेलू उत्पाद के ४.५ फीसदी तक जा सकता है। फ़िच के अनुसार एशियाई देशों में भारत कि मौजूदा रेटिंग चीन और जापान कि तुलना में ६ पायदान नीचे है। जबकि अफ्रीकी देशों में मिस्र, मोरोक्को और नामीबिया जैसे देश भी हमसे आगे हैं। ऐसी स्थिति को देखते हुए विदेशी संस्थागत निवेशक इक्विटी और डेब्ट मार्केट से अपना पैसा खींच सकते हैं। भारत में तेज़ी से बदलते हालातों और अस्थिर अर्थव्यवस्था को देखते हुए फ़िच ने करंसी आउटलुक को भी स्थिर से घटाकर नकारात्मक कर दिया है।

Wednesday, August 13, 2008

आई पी ओ की बहार से चमकेगा बाज़ार

आगामी वित्त वर्ष की शुरुआत तक देश की प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां आई पी ओ के माध्यम से शेयर बाज़ार में उतरने का मन बना चुकी हैं। इनमे देश की सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी भारतीय संचार निगम लिमिटेड भी शामिल है, जो कि अब तक का सबसे बड़ा आई पी ओ लाने कि तैयारी में है। इसके अलावा सतलुज जल विद्युत् निगम लिमिटेड, मेंग्नीज ओर इंडिया लिमिटेड और कोचीन शिपयार्ड भी जल्द ही आई पी ओ के द्वारा कारोबारी बाज़ार में आएँगी। सरकार इन सार्वजनिक कंपनियों के आई पी ओ से होने वाली कमाई से राजकोषीय घाटे को कम करना चाहती है। जिसके चलते सरकार इन कंपनियों के दस फीसदी शेयर सार्वजनिक करने कि योजना बना रही है। इसके साथ ही आई पी ओ कि बहार से निवेशक भी कहीं न कहीं बाज़ार कि मंदी के दौरान हुए घाटे की भरपाई करने के मूड में लग रहे हैं। जिसका साफ़ असर शेयर बाज़ार पर भी देखने को मिल सकता है। लंबे समय से मंदी के भंवर में फंसे शेयर बाज़ार को अब एक उम्मीद इन आई पी ओ से है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो निश्चित तौर पर जल्द ही बाज़ार में रौनक लौटेगी।

बी एस ई पर गिर सकती है सेबी की गाज

देश में पहला और विश्व में दूसरा स्थान रखने वाला बम्बई स्टॉक एक्सचेंज, दलालों की दखलंदाजी और कुप्रबंधन के कारण एक बार फिर जांच के घेरे में है। बीते कुछ समय से स्टॉक एक्सचेंज के अधिकारियों और प्रबंधन के बीच चली आ रही उठापटक रुकने का नाम नहीं ले रही है। जिसके चलते हाल ही में एक्सचेंज के गैर कार्यकारी निदेशक शेखर दत्ता ने अपना इस्तीफा दिया था। लेकिन इसके बावजूद भी बम्बई स्टॉक एक्सचेंज में हालात् जस के तस् हैं। बी एस ई में ब्रोकरों के बढ़ते हस्तक्षेप से दुखी होकर एक्सचेंज के प्रबंध निदेशक रजनीकांत पटेल भी अब इस्तीफा देने का मन बना रहे हैं। बी एस ई के सफर पर गौर करें तो कारोबार की शुरुआत से लेकर अब तक इसके अधिकारियों में निरंतर झगडा चला आ रहा है। ऍम आर माया को छोड़ दिया जाए तो ऐसा कोई कार्यकारी निदेशक नहीं रहा, जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया हो। बी एस ई में झगडे की प्रमुख वजह इसके ट्रेडिंग सदस्यों का शेयर धारक होना भी है। जिसके चलते ये प्रबंधन के कामों में भारी दखलंदाजी भी करते हैं। यही वजह है की सेबी कई बार बी एस ई को जांच के कटघरे में खड़ा कर चुका है। अब अगर जल्द ही हालात् नहीं सुधरे तो सेबी एक बार फिर बी एस ई के लिए कड़े क़ानून बनाने पर विचार कर सकता है।

Monday, August 11, 2008

कच्चे तेल में नरमी से बाज़ार में आई गर्मी

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतों में चली आ रही तेज़ी में कुछ हद तक सुधार देखने को मिल रहा है। इस साल अपने उच्चतम स्तर १४७ रुपये प्रति बैरल के स्तर पर पहुँच चुका क्रूड फिलहाल ११५ रुपये प्रति बैरल तक आ गया है। जिसका सीधा असर शेयर बाज़ार पर भी पड़ा है....और बाज़ार एक बार फिर सकारात्मक संकेत दिखा रहा है। कच्चे तेल के दामों में आई इस नरमी से निवेशकों में एक बार फिर नया उत्साह दिख रहा है। निवेशक इस सकारात्मक सेंटिमेंट का पूरा फायदा उठाना चाहते हैं....यही वजह है की सभी सेक्टरों में जमकर खरीदारी की जा रही है। वर्ष २००८ के शुरुआती दौर से ही बाज़ार में शुरू उठापटक अब भी चली आ रही है...किंतु कच्चे तेल के दामों में आई नरमी ने एक बार फिर बाज़ार और निवेशकों में नया उत्साह जगाया है।

Wednesday, August 6, 2008

शिकायत

न करता शिकायत ज़माने से कोई, अगर मान जाता मनाने से कोई।
किसी को क्यूँ याद करता है कोई, अगर भूल जाता भुलाने से कोई।

तन्हाई

अजनबी शहर के अनजान रास्ते, मेरी तन्हाईयों पे मुस्कुराते रहे।
मैं बहुत देर तक यूँ ही चलता रहा, तुम बहुत देर तक याद आते रहे।

कुछ लोग ज़माने मैं ऐसे भी तो होते हैं, महफ़िल में तो हँसते हैं तन्हाई में रोते हैं।
जिनके लिए रातों की नींदे हम खोते हैं, वो अपने मकानों में आराम से सोते हैं।

आईपीओ निवेश होगा अब सुविधाजनक

आईपीओ में निवेश करना अब निवेशकों के लिए सुविधाजनक होगा। निवेशकों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए सेबी जल्द ही एक फ़ैसला लेने पर विचार कर रही है, जिसके तहत निवेशकों द्वारा आईपीओ में लगायी गई राशि , शेयर आबंटन न होने पर उन्हें जल्दी ही लौटा दी जायेगी। इससे निवेशकों का महीनो तक फंसा रहने वाला पैसा अब उन्हें आसानी से मिल जाएगा।

Wednesday, May 14, 2008

mera shahar bhopal meri university makhanlal

aur main ganesh apka bas apka
keep to read my blog
i will be back soon with
full of metters and masseges

good nights

jaipur blast no more

qsdfghjklsedrftvgbyhujikowsedrftgyhujikolw3sedrftgbyhunjikolp;edrftgyhujikolp;