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Wednesday, May 19, 2010

हर गिरावट में तलाशें निवेश के मौके


यूरोप कर्ज संकट के बाद से ही लगातार दबाव झेल रहे वैश्विक बाज़ारों का सीधा असर भारतीय बाज़ार पर भी साफ़ दिख रहा है। यही वजह है कि साल 2010 के 5 महीने बीतने के बाद भी सेंसेक्स 18 हज़ार के मनोवैज्ञानिक आंकड़े को छूने में नाकामयाब रहा है। हालांकि इसके पीछे कुछ और कारण भी हो सकते हैं, लेकिन मुख्य वजह अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों कि अस्थिरता ही है। ग्रीक, स्पेन और पुर्तगाल जैसे देशों में फैले कर्ज संकट के चलते उनकी ग्रेडिंग घटी, जिससे न सिर्फ यूरोपीय बाज़ार टूटे, बल्कि इसका सीधा असर एशियाई बाजारों पर भी देखने को मिला। इस दौरान विदेशी संस्थागत निवेशकों का उभरते बाजारों पर भरोसा कम होने की वजह से जमकर बिकवाली देखी गई, जिससे रफ़्तार पकड़ने से पहले ही बाजारों को ब्रेक लग गया। हालांकि तेज़ी-मंदी के इस दौर में बाज़ार को कुछ हद तक घरेलू संस्थागत निवेशकों का सहारा जरूर मिला, लेकिन यह बाज़ार को गति देने के लिए नाकाफी था। इस बीच रिलायंस विवाद जैसे अहम् फैसले आने से बाज़ार को कुछ हद तक मजबूती मिली, लेकिन वैश्विक बाज़ारों का समर्थन न मिलने के कारण बाज़ार में मुनाफावसूली ही हावी रही।


इसी बीच जर्मनी द्वारा सरकारी बांड्स और शेयरों की शार्टसेलिंग पर रोक लगाये जाने की ख़बरों ने यूरोपीय बाजारों समेत भारतीय बाज़ार को भी बड़ा झटका दिया, जिससे सेंसेक्स एक ही दिन में 467 अंकों की गिरावट के साथ बंद हुआ. बाज़ार की इस बड़ी गिरावट से जहाँ छोटे निवेशक सहमे हुए हैं, वहीँ बड़े निवेशक हर गिरावट में निवेश के मौके तलाशने में जुट गए हैं। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि यूरोप संकट का ज्यादा असर भारत पर नहीं पड़ेगा और वैसे भी ग्रीक और यूनान जैसे देशों को आर्थिक संकट के भंवर से निकालने के लिए 1 लाख करोड़ डालर का आर्थिक पैकेज भी जारी किया गया है. लेकिन वहीँ दूसरी और कुछ अर्थशास्त्रियों की राय में यह पैकेज नाकाफी है. इसके साथ ही चाइना द्वारा अर्थव्यवस्था की रफ़्तार कम किए जाने के लिए अपनाए जा रहे उपायों के चलते भी वैश्विक हालात बेहतर नज़र नहीं आ रहे। कहने का मतलब है की वर्तमान वैश्विक हालातों को देखते हुए यहाँ से बाज़ार में 10-15 फीसदी की गिरावट आ सकती है. ऐसे में निवेशकों को बाज़ार की हर गिरावट पर निवेश के बेहतर मौके तलाशने चाहिए। सही मायनों में छोटे निवेशकों के लिए लम्बी अवधि में निवेश का सही मौका (इंट्री लेवल) गिरावट के समय में ही मिलता है। ऐसे में वर्तमान दौर में चल रहा करेक्शन निवेशकों को लम्बे समय में बेहतर मुनाफा दिला सकता है। जरूरत है तो बस सही रणनीति और धैर्य के साथ बाज़ार को वाच करने की।