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Saturday, June 12, 2010

राजा के दिए ज़ख्म पर 3जी का मरहम

दूरसंचार विभाग से 3जी और ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम हासिल करने वाली कम्पनियों को भले ही अपनी जेब ढीली करनी पड़ी हो, लेकिन इससे सरकार का खजाना जरूर भर गया। वित्त मंत्री ने नीलामी के जरिये जहाँ 35-40 हजार करोड़ रुपए मिलने का अनुमान लगाया था, वहीं इससे सरकार को 1 लाख करोड़ से भी अधिक का राजस्व प्राप्त हुआ है। अब सरकार इस राशि के इस्तेमाल से राजकोषीय घाटे को कम करने पर विचार कर रही है। लेकिन गहराई से विश्लेषण किया जाए तो यह आमदनी साल 2008 में हुई 2जी नीलामी की भरपाई मात्र ही है। वैसे नीलामी से इकठ्ठा हुई राशि की एक वजह यह भी है कि भारत की तेजी से बढती आबादी में टेलिकॉम कम्पनियों को सुनहरा भविष्य नज़र आ रहा है, यही वजह है की स्पेक्ट्रम नीलामी से मिली राशि सरकार की उम्मीद से कहीं ज्यादा है। स्पेक्ट्रम हासिल करने की होड़ में शामिल कुल 11 कम्पनियों में से जहाँ अमेरिकी कम्पनी क्वालकॉम ने सरकार को सबसे अधिक 4912 करोड़ का भुगतान किया है, वहीं दूसरी टेलिकॉम कम्पनियां भी पीछे नहीं हैं।

फिलहाल उम्मीद से कहीं अधिक हुई आमदनी से सरकार को राजकोषीय घाटा कम करने में मदद मिले या न मिले लेकिन साल 2008 में दूरसंचार मंत्री ए राजा द्वारा औने-पौने दामों में की गई 2जी स्पेक्ट्रम नीलामी का जख्म भरने में मदद जरूर मिलेगी। इस नीलामी से सरकार ने करीब 70 हजार करोड़ के नुकसान का अनुमान लगाया था। कुल मिलाकर सरकार जहाँ 3जी और ब्रॉडबैंड वायरलेस एक्सेस से होने वाली आय का अनुमान 70 हज़ार करोड़ लगा रही है, वह वास्तव में मृगमरीचिका के समान है। क्योंकि 2008 की नीलामी से होने वाले वास्तविक घाटे को जोड़ा जाए तो सरकार न नफा- न-नुकसान वाली स्थिति में ही है। लेकिन फिर भी खुद को तसल्ली देने और अपने काबिना मंत्री कि कारगुजारियों पर पर्दा डालने के लिए सरकार इस नीलामी से मिलने वाली राशि को बड़ी उपलब्धि बता रही है। खैर सरकार चाहे जो कहे लेकिन साल 2008 की नीलामी में राजा ने जहाँ अपनी मनमानी से टेलिकॉम कम्पनियों को लाभ पहुँचाया वहीं सरकारी खजाने को चूना लगाने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। ये राजा की ही मेहरबानी थी की कई कम्पनियों ने बेहद सस्ती कीमत पर लाईसेंस पाकर अपने विदेशी साझेदारों को हिस्सेदारी बेचकर खूब मुनाफा कमाया। अब सरकार भले ही राजा की गलतियों पर पर्दा डालते हुए सरकारी खजाने के भरने का राग अलाप रही है, लेकिन सच्चाई पर पर्दा नहीं डाला जा सकता। राजा के कारनामों पर सरकार की प्रतिक्रिया देखकर तो यही लगता है की वो राजा की खामियों को छुपाने के लिए उम्मीद से ज्यादा आमदनी का ढिंढोरा पीट रही है, जबकि सच्चाई कुछ और ही है। फिलहाल इस पूरे मामले में सरकार के लिए ये पंक्तियाँ बिलकुल मुफीद हैं "इक बरहमन ने कहा है के ये साल अच्छा है, दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है..."

Wednesday, May 19, 2010

हर गिरावट में तलाशें निवेश के मौके


यूरोप कर्ज संकट के बाद से ही लगातार दबाव झेल रहे वैश्विक बाज़ारों का सीधा असर भारतीय बाज़ार पर भी साफ़ दिख रहा है। यही वजह है कि साल 2010 के 5 महीने बीतने के बाद भी सेंसेक्स 18 हज़ार के मनोवैज्ञानिक आंकड़े को छूने में नाकामयाब रहा है। हालांकि इसके पीछे कुछ और कारण भी हो सकते हैं, लेकिन मुख्य वजह अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों कि अस्थिरता ही है। ग्रीक, स्पेन और पुर्तगाल जैसे देशों में फैले कर्ज संकट के चलते उनकी ग्रेडिंग घटी, जिससे न सिर्फ यूरोपीय बाज़ार टूटे, बल्कि इसका सीधा असर एशियाई बाजारों पर भी देखने को मिला। इस दौरान विदेशी संस्थागत निवेशकों का उभरते बाजारों पर भरोसा कम होने की वजह से जमकर बिकवाली देखी गई, जिससे रफ़्तार पकड़ने से पहले ही बाजारों को ब्रेक लग गया। हालांकि तेज़ी-मंदी के इस दौर में बाज़ार को कुछ हद तक घरेलू संस्थागत निवेशकों का सहारा जरूर मिला, लेकिन यह बाज़ार को गति देने के लिए नाकाफी था। इस बीच रिलायंस विवाद जैसे अहम् फैसले आने से बाज़ार को कुछ हद तक मजबूती मिली, लेकिन वैश्विक बाज़ारों का समर्थन न मिलने के कारण बाज़ार में मुनाफावसूली ही हावी रही।


इसी बीच जर्मनी द्वारा सरकारी बांड्स और शेयरों की शार्टसेलिंग पर रोक लगाये जाने की ख़बरों ने यूरोपीय बाजारों समेत भारतीय बाज़ार को भी बड़ा झटका दिया, जिससे सेंसेक्स एक ही दिन में 467 अंकों की गिरावट के साथ बंद हुआ. बाज़ार की इस बड़ी गिरावट से जहाँ छोटे निवेशक सहमे हुए हैं, वहीँ बड़े निवेशक हर गिरावट में निवेश के मौके तलाशने में जुट गए हैं। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि यूरोप संकट का ज्यादा असर भारत पर नहीं पड़ेगा और वैसे भी ग्रीक और यूनान जैसे देशों को आर्थिक संकट के भंवर से निकालने के लिए 1 लाख करोड़ डालर का आर्थिक पैकेज भी जारी किया गया है. लेकिन वहीँ दूसरी और कुछ अर्थशास्त्रियों की राय में यह पैकेज नाकाफी है. इसके साथ ही चाइना द्वारा अर्थव्यवस्था की रफ़्तार कम किए जाने के लिए अपनाए जा रहे उपायों के चलते भी वैश्विक हालात बेहतर नज़र नहीं आ रहे। कहने का मतलब है की वर्तमान वैश्विक हालातों को देखते हुए यहाँ से बाज़ार में 10-15 फीसदी की गिरावट आ सकती है. ऐसे में निवेशकों को बाज़ार की हर गिरावट पर निवेश के बेहतर मौके तलाशने चाहिए। सही मायनों में छोटे निवेशकों के लिए लम्बी अवधि में निवेश का सही मौका (इंट्री लेवल) गिरावट के समय में ही मिलता है। ऐसे में वर्तमान दौर में चल रहा करेक्शन निवेशकों को लम्बे समय में बेहतर मुनाफा दिला सकता है। जरूरत है तो बस सही रणनीति और धैर्य के साथ बाज़ार को वाच करने की।

Wednesday, February 24, 2010

बंगाल के चुनावी ट्रैक पर दौड़ी 'ममता' मेल

यूपीए सरकार में लगातार अपना दूसरा रेल बजट पेश करने वाली ममता बनर्जी ने लोकलुभावन बजट से जनता को खुश कर दिया। पिछले 7 सालों से यात्री किराए में नहीं की गयी बढ़ोत्तरी को इस बार भी जारी रखते हुए ममता ने लालू की तर्ज पर कई बड़ी घोषणाएं कीं। लेकिन इन सबके बीच अपने पूरे बजट भाषण के दौरान ममता बंगाल पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान दिखीं।

बंगाल पर बरसी ममता की ममता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था की उनकी हर दूसरी घोषणा किसी न किसी रूप में बंगाल से जुडी थी. बजट में मिली 54 नयी ट्रेनों में से 16 बंगाल के खाते में गयी हैं, वहीँ 28 पैसेंजर ट्रेनों में से 5 गाड़ियाँ भी बंगाल को ही मिली हैं. बात सिर्फ ट्रेनों तक ही सीमित नहीं है, अगर दूसरी घोषणाओं की बात करें तो उनमें भी ममता का बंगाल मोह साफ़ नज़र आता है. टाटा के नैनों प्लांट को सिंगूर से सानन्द भेजने वाली ममता ने सिंगूर की जनता को जहाँ रेल कोच फैक्ट्री के रूप में मरहम लगाने की कोशिश की, वहीँ खड़गपुर की जनता को लुभाने के लिए आदर्श स्टेशन के साथ ही रेल रिसर्च सेंटर की सौगात भी दे दी. लेकिन बंगाल पर मेहरबान ममता के पिटारे से अभी और घोषणाएं होना बाकी थीं. बजट में घोषित 4 रेल अकादमियों में से एक कोलकाता में, इसके साथ ही हावड़ा-सियालदह को आपस में जोड़ने और चितरंजन कारखाने कि क्षमता बढाए जाने जैसी और भी कई बड़ी घोषणाएं बंगाल के नाम रहीं. हालांकि ऐसा नहीं है कि ममता कि ममता सिर्फ बंगाल पर ही बरसी, बल्कि दूसरे प्रदेशों को भी कुछ न कुछ मिला. लेकिन इन सबके बीच एक बात जो स्पष्ट नज़र आई, वो यह कि लगभग हर प्रोजेक्ट में पश्चिम बंगाल हिस्सेदार जरूर बना।

कुल मिलाकर ममता का बंगाल पर सुविधाओं कि बरसात करने का मकसद राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव हैं, या कुछ और। लेकिन बजट में बंगाल कि जनता को दी गयी सौगात से यह बजट कम और तृणमूल कांग्रेस का चुनावी घोषणा-पत्र अधिक नज़र आया.

Sunday, January 24, 2010

बजट तक गुलजार रहेगा बाज़ार


पिछला हफ्ता बाज़ार के लिए बहुत ही निराशाजनक रहा। ग्लोबल मार्केट से मिले ख़राब संकेतों के चलते ऍफ़आईआई ही नहीं बल्कि घरेलू संस्थागत निवेशकों और म्युचुअल फंड्स ने भी जमकर बिकवाली की। नतीजा दो दिनों में ही मार्केट 600 पॉइंट गिरकर बेक फुट पर आ गया। हालांकि इस दौरान कुछ दिग्गज कम्पनियों के तिमाही नतीजे भी बेहतर रहे लेकिन इनसे भी बाज़ार को कुछ ख़ास सहारा मिलता नज़र नहीं आया। बाज़ार की इस तरह से अचानक बदली चाल को देखकर निवेशकों में एक बार फिर बड़े करेक्शन की अटकलबाजियां शुरू हो गयी हैं। कोई इसे टेक्नीकल करेक्शन मान रहा है, तो कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि बाज़ार में लम्बी गिरावट भी आ सकती है। हालांकि ऐसे समय में बाज़ार के पंडितों का अपना अलग-अलग मत है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर यहाँ से बाज़ार का ऊंट किस करवट बैठेगा?
महंगाई के चलते पहले से ही राजनीतिक विरोध झेल रही सरकार भी बाज़ार को लेकर चिंतित नज़र आ रही है। और हो भी क्यों ना, आखिर बाज़ार किसी भी देश कि अर्थव्यवस्था कि प्रगति का सूचक जो है। ऐसे में इसी महीने आने वाली आरबीआई की क्रेडिट पोलिसी में महंगाई को नियंत्रित करने का भी भारी दबाव रहेगा। क्या बाज़ार से अतिरिक्त नकदी खींचने के लिए प्रमुख ब्याज दरों में इजाफा होगा? अगर ब्याज दरें बढाई गयीं तो बैंकिंग सेक्टर पर क्या प्रभाव पड़ेगा। ये सवाल सिर्फ हमारे ही नहीं बल्कि सरकार के दिमाग में भी कौंध रहे होंगे। ऐसे में इनसे निपटने के लिए सरकार कम से कम बजट तक तो ब्याज दरें बढाने का रिस्क नहीं लेगी। जहाँ तक महंगाई का सवाल है तो जनता आज से नहीं बल्कि काफी समय से इसे झेलती आई है। यू पी ऐ सरकार अपनी दूसरी पारी के पहले बजट में किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहेगी। इसलिए बजट के पहले बाज़ार में किसी भी तरह की गिरावट की आशंका कम ही है। हाँ बजट के बाद बाज़ार का मूड क्या होगा, इसका अंदाजा तो बजट में हुई घोषणाओं के बाद ही लगेगा। फिलहाल बजट तक निवेशकों को डरने की जरूरत नहीं है।