पिछला हफ्ता बाज़ार के लिए बहुत ही निराशाजनक रहा। ग्लोबल मार्केट से मिले ख़राब संकेतों के चलते ऍफ़आईआई ही नहीं बल्कि घरेलू संस्थागत निवेशकों और म्युचुअल फंड्स ने भी जमकर बिकवाली की। नतीजा दो दिनों में ही मार्केट 600 पॉइंट गिरकर बेक फुट पर आ गया। हालांकि इस दौरान कुछ दिग्गज कम्पनियों के तिमाही नतीजे भी बेहतर रहे लेकिन इनसे भी बाज़ार को कुछ ख़ास सहारा मिलता नज़र नहीं आया। बाज़ार की इस तरह से अचानक बदली चाल को देखकर निवेशकों में एक बार फिर बड़े करेक्शन की अटकलबाजियां शुरू हो गयी हैं। कोई इसे टेक्नीकल करेक्शन मान रहा है, तो कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि बाज़ार में लम्बी गिरावट भी आ सकती है। हालांकि ऐसे समय में बाज़ार के पंडितों का अपना अलग-अलग मत है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर यहाँ से बाज़ार का ऊंट किस करवट बैठेगा?
महंगाई के चलते पहले से ही राजनीतिक विरोध झेल रही सरकार भी बाज़ार को लेकर चिंतित नज़र आ रही है। और हो भी क्यों ना, आखिर बाज़ार किसी भी देश कि अर्थव्यवस्था कि प्रगति का सूचक जो है। ऐसे में इसी महीने आने वाली आरबीआई की क्रेडिट पोलिसी में महंगाई को नियंत्रित करने का भी भारी दबाव रहेगा। क्या बाज़ार से अतिरिक्त नकदी खींचने के लिए प्रमुख ब्याज दरों में इजाफा होगा? अगर ब्याज दरें बढाई गयीं तो बैंकिंग सेक्टर पर क्या प्रभाव पड़ेगा। ये सवाल सिर्फ हमारे ही नहीं बल्कि सरकार के दिमाग में भी कौंध रहे होंगे। ऐसे में इनसे निपटने के लिए सरकार कम से कम बजट तक तो ब्याज दरें बढाने का रिस्क नहीं लेगी। जहाँ तक महंगाई का सवाल है तो जनता आज से नहीं बल्कि काफी समय से इसे झेलती आई है। यू पी ऐ सरकार अपनी दूसरी पारी के पहले बजट में किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहेगी। इसलिए बजट के पहले बाज़ार में किसी भी तरह की गिरावट की आशंका कम ही है। हाँ बजट के बाद बाज़ार का मूड क्या होगा, इसका अंदाजा तो बजट में हुई घोषणाओं के बाद ही लगेगा। फिलहाल बजट तक निवेशकों को डरने की जरूरत नहीं है।
महंगाई के चलते पहले से ही राजनीतिक विरोध झेल रही सरकार भी बाज़ार को लेकर चिंतित नज़र आ रही है। और हो भी क्यों ना, आखिर बाज़ार किसी भी देश कि अर्थव्यवस्था कि प्रगति का सूचक जो है। ऐसे में इसी महीने आने वाली आरबीआई की क्रेडिट पोलिसी में महंगाई को नियंत्रित करने का भी भारी दबाव रहेगा। क्या बाज़ार से अतिरिक्त नकदी खींचने के लिए प्रमुख ब्याज दरों में इजाफा होगा? अगर ब्याज दरें बढाई गयीं तो बैंकिंग सेक्टर पर क्या प्रभाव पड़ेगा। ये सवाल सिर्फ हमारे ही नहीं बल्कि सरकार के दिमाग में भी कौंध रहे होंगे। ऐसे में इनसे निपटने के लिए सरकार कम से कम बजट तक तो ब्याज दरें बढाने का रिस्क नहीं लेगी। जहाँ तक महंगाई का सवाल है तो जनता आज से नहीं बल्कि काफी समय से इसे झेलती आई है। यू पी ऐ सरकार अपनी दूसरी पारी के पहले बजट में किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहेगी। इसलिए बजट के पहले बाज़ार में किसी भी तरह की गिरावट की आशंका कम ही है। हाँ बजट के बाद बाज़ार का मूड क्या होगा, इसका अंदाजा तो बजट में हुई घोषणाओं के बाद ही लगेगा। फिलहाल बजट तक निवेशकों को डरने की जरूरत नहीं है।