वैश्विक मंदी के कारण औद्योगिक सेक्टर में लगातार घट रही मांग को लेकर सरकार काफ़ी चिंतित नज़र आ रही है, यही वजह है की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए रिज़र्व बैंक और सरकार मिलकर साझा कदम उठा रहे हैं। एक ओर जहाँ रिज़र्व बैंक बाज़ार में मांग को बनाये रखने के लिए निरंतर तरलता बढ़ाने के उपाय कर रहा है, तो दूसरी ओर सरकार भी मांग की कमी से जूझ रहे सेक्टरों को राहत रुपी टॉनिक देने की शुरुआत कर चुकी है। रिज़र्व बैंक द्वारा रेपो दरों में की गई कटौती से बैंकों के लिए शार्टटर्म लोन सस्ता होगा जिससे बैंकों के पास नकदी बढेगी। इस नकदी को बैंक लोन बांटने के लिए यूज करेंगे और बाज़ार में कैश फ्लो बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि आने वाले समय में बाज़ार में तरलता बढ़ाने के लिए आर बी आई कुछ और नए कदम भी उठा सकता है। इसके साथ ही रिज़र्व बैंक ने रियलिटी सेक्टर को राहत पहुँचाने के लिए रियल इस्टेट लोन को री-एडजेस्ट करने का आश्वासन भी दिया है। उधर मंदी की मार से सबसे अधिक जूझ रहे ऑटो सेक्टर को बड़ी राहत देते हुए सरकार ने सेनवेट यानी सेंट्रल वेल्यु एडेड टैक्स में भी 4 फीसदी की कटौती की है। जिसके कारण अब भविष्य में गुड्स और सर्विसेस की कीमतों में कमी आने की संभावना के चलते ऑटोमोबाइल सेक्टर में निश्चित रूप से तेज़ी आने की उम्मीद बढ़ गयी है। निर्यात क्षेत्र को दी जाने वाली राहत के रूप में आगामी मार्च तक 2 फीसदी का इंटरेस्ट सब-वेंशन दिया गया है। इसके साथ ही टेक्सटाइल इंडस्ट्री की खस्ता हालत को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इस सेक्टर के लिए 1400 करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज को भी मंजूर किया है। महंगाई और मंदी से जूझ रहे आम आदमी के लिए सबसे बड़ा टॉनिक तो सरकार ने पेट्रोल और डीजल के दामों में कमी के रूप में दिया है। आख़िर देर से ही सही लेकिन अमेरिका और चीन के बाद भारत सरकार ने भी अपनी अर्थव्यवस्था को मंदी से उबारने के लिए पैकेज रुपी टॉनिक देना शुरू कर दिया है। प्रथम चरण में दिए गए वित्तीय पैकेज से एक्सपोर्ट, इन्फ्रास्ट्रक्चर, ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल सेक्टर्स को मजबूती मिलेगी। कुल मिलाकर मंदी के दौर से गुजर रहे सेक्टरों के लिए यह आर्थिक पैकेज किसी टॉनिक से कम नहीं। सरकार द्वारा उठाये जा रहे इन महत्वपूर्ण कदमों से आने वाले समय में महंगाई दर में कमी के साथ ही ग्रोथ रेट में इजाफा देखने को मिल सकता है।
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Sunday, December 7, 2008
Tuesday, December 2, 2008
एफडीआई रखेगा बरकरार, टेलिकॉम सेक्टर की रफ़्तार
आर्थिक मंदी के दौर में जहाँ धुरंधर सेक्टर कम हो रहे निवेश के चलते नुकसान झेल रहे हैं, वहीँ विश्व में तेज़ी से उभरता भारत का टेलिकॉम सेक्टर सरपट दौड़ रहा है। भारत को एक बड़े बिज़नस हब के रूप में देख रही विदेशी दूरसंचार कंपनियाँ लगातार यहाँ निवेश बढ़ाने को लेकर उत्सुक दिख रही हैं। विदेशी कम्पनियों की इस उत्सुकता का एक कारण भारत सरकार द्वारा हाल ही में दूरसंचार क्षेत्र में आने वाली नई कम्पनियों को लाईसेन्स देने की घोषणा भी है। इसके साथ ही वर्ष 2009 से थर्ड जेनरेशन सेवाओं को भी शुरू कर दिया जाएगा। इन सुविधाओं की घोषणा के बाद से ही विदेशी दूरसंचार कंपनियाँ भारत के टेलिकॉम सेक्टर में निवेश को लेकर खासी उत्साहित नज़र आ रही हैं। वैसे देखा जाए तो देश की बढ़ती जनसँख्या एक अभिशाप है, लेकिन टेलिकॉम सेक्टर की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को यही जनसँख्या एक वरदान के रूप में नज़र आती है। यही कारण है की दुनियाभर की टेलिकॉम कंपनियाँ भारत को एक बड़े टेलिकॉम हब के रूप में देखती हैं। आंकडों पर गौर करें तो वर्ष 2008 की शुरूआती दो तिमाहियों में टेलिकॉम सेक्टर ने लगभग 2 अरब डॉलर से भी अधिक का एफडीआई खींचा है। हाल ही में नार्वे की टेलिकॉम कम्पनी "टेलीनोर' ने यूनीटेक वायरलेस में 6120 करोड़ रुपये निवेश कर 60 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीद ली है। दूरसंचार मंत्रालय का मानना है कि आने वाले समय में और कई बड़ी टेलिकॉम कंपनियाँ भारत में निवेश करेंगी। इसके लिए सरकार घरेलू कम्पनियों को अपनी अधिक से अधिक हिस्सेदारी विदेशी कम्पनियों को बेचने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। मंत्रालय भारत के टेलिकॉम सेक्टर में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश बढ़ाने के उद्देश्य से ऐसे नियम लागू करने जा रहा है, जिससे कि जल्द से जल्द नए आपरेटरों को यहाँ अपनी सेवाएं शुरू करने में सुविधा हो। आने वाले समय में विडियोकान, स्वान, लूप जैसी कंपनियाँ टेलिकॉम सेक्टर में नई पारी खेलने जा रही हैं, जिसे देखते हुए लग रहा है कि मंदी के बाद भी भारत के दूरसंचार क्षेत्र में तेजी से निवेश बढेगा और भविष्य में भी टेलिकॉम सेक्टर कि रफ़्तार बरकरार रहेगी।
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