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Saturday, November 1, 2008

विदेशी मुद्रा भण्डार बनाम सीआरआर

पिछले कुछ समय से बाज़ार में नकदी की समस्या दूर करने की लिए रिजर्व बैंक लगातार सीआरआर में कटौती कर रहा है। लेकिन क्या इस कटौती का कारण सिर्फ़ बाज़ार में तरलता बढ़ाना ही है? इस बार सीआरआर में की गयी 1 प्रतिशत की कमी का कारण भारतीय विदेशी मुद्रा भण्डार में आ रही गिरावट तो नहीं। एक समय था जब भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था, लेकिन पिछले कुछ समय से इसमें लगातार कमी आ रही है। वर्ष-2008 की बात करें तो पिछले आठ महीनों में यह 50 अरब डॉलर से भी अधिक गिर चुका है, कारण साल की शुरुआत से ही भारतीय शेयर बाज़ार की खस्ता हालत के चलते विदेशी संस्थागत निवेशकों ने अपना पैसा खींचना शुरू कर दिया, जिसके चलते डॉलर के मुकाबले रूपया कमजोर होने लगा। ऐसे में रुपये को मजबूती दिलाने के लिए रिज़र्व बैंक ने डॉलर बेचना शुरू कर दिया। यही कारण है कि पिछले कुछ समय से भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार कमी आ रही है। एक वक्त था जब भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार 300 अरब डॉलर से भी अधिक था, लेकिन टूटते रुपये को सहारा देने के लिए रिज़र्व बैंक को डॉलर बेचने जैसा कदम उठाना पड़ा और वर्तमान में यह घटकर 252 अरब डॉलर के आस-पास रह गया है। हालांकि रिज़र्व बैंक द्वारा डॉलर कि बिक्री का सकारात्मक परिणाम भी देखने में आया और डॉलर के मुकाबले रूपया कुछ हद तक सुधरा भी है। लेकिन डॉलर कि बिक्री ने सीआरआर में की गई कमी के कारण बाज़ार में आने वाली तरलता के असर को कम कर दिया। यही वजह है कि बाज़ार में पर्याप्त तरलता को बनाये रखने के लिए आरबीआई को एक बार फिर सीआरआर में कटौती करनी पड़ी है। खैर जो भी हो पर अब यह देखना दिलचस्प होगा कि गिरते विदेशी मुद्रा भण्डार को बढ़ाने और बाज़ार में लिक्विडिटी बनाये रखने के लिए केंद्रीय बैंक आख़िर क्या नए कदम उठाती है।

1 comment:

तीसरा कदम said...

मुझे आपकी पोस्ट काफी अच्छी लगी.
यहाँ में आपसे एक निवेदन कर बात कहना चाहता हूँ कि शायद साल के शुरुआत में शेयर बाज़ार की स्थिति अच्छी ही थी. क्योंकि सेंसेक्स २१००० की देहरी को छू गया था .

बहुत डिटेल जानकारी दी है. बहुत ही अच्छा.