वैश्विक मंदी ने वैसे तो किसी भी सेक्टर को नहीं बख्शा है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर फाइनेंस और ऑटो सेक्टर्स में देखने को मिल रहा है। दुनिया में महाशक्ति कहलाने वाला अमेरिका इस मंदी से सर्वाधिक प्रभावित हुआ है, और वहां इस साल बंद होने वाले बैंकों कि संख्या बढकर 19 हो गई है। हालात यह है कि वहां के फिनान्सिअल सेक्टर में अब कर्मचारियों कि छंटनी का दौर शुरू हो गया है। अमेरिकी वित्तीय संस्थानों में बैंक ऑफ़ अमेरिका, इनवेस्टमेंट बैंक मोर्गन स्टेनली, लेहमन ब्रदर्स, मेरिल लिंच, जेपी मोर्गन चेज, गोल्डमन सेक्स, सिटी ग्रुप, फर्स्ट अमेरिकन कोर्प और दुनिया कि सबसे बड़ी म्यूचुअल फंड कम्पनी फिडेलिटी इनवेस्टमेंट जैसे दिग्गजों को भी अपना वर्क फोर्स कम करने को मजबूर होना पड़ा है। हाल ही में लॉस एंजेलेस स्थित सिक्यूरिटी पैसिफिक बैंक तथा ह्यूस्टन के फ्रैंकलिन बैंक के दिवालियेपन ने अमेरिका में छाए संकट के बादलों को और घना कर दिया है। उधर अमेरिकी मीडियाई बाज़ार को भी कमजोर विज्ञापन के चलते कर्मचारियों कि छंटनी करने को मजबूर होना पड़ रहा है। बात अगर यहीं तक हो तो फिर भी ठीक है, लेकिन मंदी के इरादे कुछ नेक नहीं लग रहे हैं, तभी तो ऑटो सेक्टर भी उसकी गिरफ्त से बच नहीं पाया है.....और अब हालात ये हैं कि वैश्विक ऑटो बाजार मंदी के कारण कारों कि मांग में भारी कमी देखने को मिल रही है, जिसके चलते अमेरिका कि सबसे बड़ी कार निर्माता कम्पनी भी दिवालिया होने कि कगार पर पहुँच चुकी है। हालांकि कम्पनी के प्रेजिडेंट ने दिवालियेपन से बचने के लिए सरकार से लोन गारंटी कि मांग उठायी है, लेकिन अमेरिका में राजनीतिक बदलाव के चलते ये मांग इतनी जल्दी पूरी होने के आसार कम ही नजर आ रहे हैं। खैर, इस वैश्विक मंदी ने दुनियाभर की वाहन निर्माता कम्पनियों कि रफ़्तार पर तो ब्रेक लगाया ही है...साथ ही कुछ कम्पनियों को तो बिकने कि कगार पर ला खड़ा किया है। ऐसे में जगजीत सिंह की गाई हुयी ग़ज़ल की पेरोडी सटीक बैठती है कि...मंदी आयी है तो फिर दूर तलक जायेगी...लोग बेवजह मंदी का सबब पूछेंगे...
3 comments:
सही अवलोकन है-लम्बा सफर है, अभी तो शुरुवात है.
मंदी अभी आई कहां से अभी तों सांत संमदर पा हैं उसकी धमक जरूर सुनाई देने लगी है। अाने दो तब पता चलेगा
namaskar bhai ...
aapka ye prayas bahut hi sarahniya hai ...isi tarah likhte rahiye ...
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