मौसम भले ही अब गर्मी का शुरू हो गया हैं, लेकिन आई पी ओ बाज़ार के लिए तो अभी सब कुछ ठंडा ही हैं। आपको शायद पिछले वर्ष रिलायंस पॉवर के आई पी ओ का समय याद हो, जब शेयर मार्केट बूम पर था, और सभी आई पी ओ के माध्यम से शेयर बाज़ार में अपनी किस्मत आजमाने को उतारू थे। लेकिन वो दिन अब हवा हुए जब शेयर मार्केट और आई पी ओ दोनों बुलेट ट्रेन की रफ़्तार से भाग रहे थे।
हालांकि पिछले हफ्ते सेंसेक्स के 10 हज़ार का मनोवैज्ञानिक स्तर पार करने के बावजूद भी आई पी ओ बाज़ार में कोई ख़ास सुधार देखने को नहीं मिल रहा है। आई पी ओ बाज़ार में न हो पा रहे इस सुधार के पीछे फिलहाल मुझे 2 कारण नज़र आ रहे हैं। पहला तो ये की विदेशी संस्थागत निवेशक अब भी भारतीय बाजारों में निवेश करने से कतरा रहे हैं और दूसरा ये की जो कंपनियाँ आई पी ओ लाना चाहती हैं वो भी शायद चुनाव ख़त्म होने का इंतज़ार कर रही हैं। आई पी ओ बाज़ार में छाई सुस्ती का आलम ये हैं की पिछले तीन हफ्तों में सेंसेक्स 20 फीसदी ऊपर आ चुका हैं, लेकिन इसके बावजूद 600 इश्यु लिस्टिंग की कतार में हैं। इन आई पी ओ के कतार में होने का कारण सेंसेक्स की धीमी चाल तो हैं ही, लेकिन इसके पीछे सबसे बड़ा कारण सेकंड्री मार्केट से अच्छे और सकारात्मक संकेतों का न होना भी हैं। जहाँ तक आई पी ओ बाज़ार का सवाल हैं तो इसकी मजबूती विदेशी संस्थागत निवेशकों के ऊपर काफ़ी कुछ निर्भर करती हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से जिस तरह से भारतीय बाजारों का प्रदर्शन रहा हैं, उसे देखते हुए निवेश की बात तो दूर, ऍफ़ आई आई ने उल्टा पैसा खींचना शुरू कर दिया था। ऐसे में भला आई पी ओ बाज़ार से बेहतरी की उम्मीद करना भी बेमानी ही होगा।
हालांकि जहाँ तक उम्मीद हैं की चुनाव के ठीक बाद सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों एनएच पी सी और आयल इंडिया के आई पी ओ आ सकते हैं। कुल मिलाकर अगर बाज़ार की सभी स्थितियों का विश्लेषण किया जाए तो एक बात साफ़ होती हैं, की कहीं न कहीं निवेशक और कंपनियाँ भी चुनाव के चलते शेयर बाज़ार की अस्थिरता का सामना नहीं करना चाहती। शायद यही वजह हैं की आई पी ओ बाज़ार कहीं न कहीं चुनावी चक्कर में पड़ा दिख रहा हैं और फिलहाल 2 महीने इसके ठंडा रहने के आसार ही नज़र आ रहे हैं।
हालांकि पिछले हफ्ते सेंसेक्स के 10 हज़ार का मनोवैज्ञानिक स्तर पार करने के बावजूद भी आई पी ओ बाज़ार में कोई ख़ास सुधार देखने को नहीं मिल रहा है। आई पी ओ बाज़ार में न हो पा रहे इस सुधार के पीछे फिलहाल मुझे 2 कारण नज़र आ रहे हैं। पहला तो ये की विदेशी संस्थागत निवेशक अब भी भारतीय बाजारों में निवेश करने से कतरा रहे हैं और दूसरा ये की जो कंपनियाँ आई पी ओ लाना चाहती हैं वो भी शायद चुनाव ख़त्म होने का इंतज़ार कर रही हैं। आई पी ओ बाज़ार में छाई सुस्ती का आलम ये हैं की पिछले तीन हफ्तों में सेंसेक्स 20 फीसदी ऊपर आ चुका हैं, लेकिन इसके बावजूद 600 इश्यु लिस्टिंग की कतार में हैं। इन आई पी ओ के कतार में होने का कारण सेंसेक्स की धीमी चाल तो हैं ही, लेकिन इसके पीछे सबसे बड़ा कारण सेकंड्री मार्केट से अच्छे और सकारात्मक संकेतों का न होना भी हैं। जहाँ तक आई पी ओ बाज़ार का सवाल हैं तो इसकी मजबूती विदेशी संस्थागत निवेशकों के ऊपर काफ़ी कुछ निर्भर करती हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से जिस तरह से भारतीय बाजारों का प्रदर्शन रहा हैं, उसे देखते हुए निवेश की बात तो दूर, ऍफ़ आई आई ने उल्टा पैसा खींचना शुरू कर दिया था। ऐसे में भला आई पी ओ बाज़ार से बेहतरी की उम्मीद करना भी बेमानी ही होगा।
हालांकि जहाँ तक उम्मीद हैं की चुनाव के ठीक बाद सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों एनएच पी सी और आयल इंडिया के आई पी ओ आ सकते हैं। कुल मिलाकर अगर बाज़ार की सभी स्थितियों का विश्लेषण किया जाए तो एक बात साफ़ होती हैं, की कहीं न कहीं निवेशक और कंपनियाँ भी चुनाव के चलते शेयर बाज़ार की अस्थिरता का सामना नहीं करना चाहती। शायद यही वजह हैं की आई पी ओ बाज़ार कहीं न कहीं चुनावी चक्कर में पड़ा दिख रहा हैं और फिलहाल 2 महीने इसके ठंडा रहने के आसार ही नज़र आ रहे हैं।
1 comment:
bahut thik mujhe apka dosra karan jyada sahi laga..
lekin jahaan tak hai ki agar hamare mahan neta aam chunav mein paisa bahatein hain to kahin na kahin ek chhota bazaar tezi se dor sakta hai isse niche se suruaat hona achhe sanket sabit ho sakte hain.. aur chunav ke bad to IPO to sambhavtya aa hi rahe hain to fayda hone ke chans hain.
achchhi post di hai.
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