आप सभी का स्वागत करता है...

आप सभी का स्वागत करता है...

Tuesday, April 7, 2009

जूता मारकर भी जीते इनाम


क्या आपको याद है 14 दिसम्बर की वो प्रेस कांफ्रेंस जब एक इराकी पत्रकार ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति की तरफ़ जूता उछाला था। कुछ दिनों पहले ही चीनी प्रधानमंत्री पर भी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में भाषण के दौरान एक युवक ने उन्हें निशाना बनाते हुए जूता फेंका था. अगर आप किसी कारणवश वो लम्हा नहीं देख पाये तो इसका मलाल अपने दिल से निकाल दीजिये, क्योंकि ठीक उसी का एक्शन रिप्ले हमारे देश में भी दिखा। फर्क सिर्फ़ इतना था की वहां अंकल सैम थे और यहाँ हमारे होम मिनिस्टर साहब।

वाकया उस समय हुआ जब एक पत्रकार वार्ता के दौरान एक निजी समाचार पत्र के वरिष्ठ संवाददाता द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में मिनिस्टर साहब संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए और उसका खामियाजा जूते के रूप में उनके सामने आया।
हालांकि एक पत्रकार की दृष्टि से देखा जाए तो किसी भी तरह के भावावेश में आकर इस तरह का कदम उठाना निंदनीय है, लेकिन इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि जब जनता के प्रतिनिधि हमारे विधायक और सांसद ही सदन में एक दूसरे पर जूतम पैजार शुरू कर देते हैं तो भावनाओं में आकर एक पत्रकार को अपने आप पर काबू रखना कितना मुश्किल हुआ होगा, और इसी का परिणाम है जो इतना बड़ा हादसा हो गया। खैर जो हुआ सो हुआ, लेकिन हद तो तब हो गई जब एक विशेष सम्प्रदाय से सम्बद्ध रखने वाले राजनैतिक दल के बड़े नेता ने गृह मंत्री पर जूता फेंकने वाले पत्रकार को सम्मानित करने का निर्णय ले लिया। जी हाँ इस राजनैतिक दल के वरिष्ठ नेता ने कथित पत्रकार के साहस और बहादुरी की प्रशंसा करते हुए उसे 2 लाख रुपये नगद पुरस्कार देने की घोषणा कर दी।
अब इस पुरस्कार की घोषणा ने एक नए सवाल को जन्म दे दिया है। वो ये की कहीं ऐसा तो नहीं की पत्रकार को जूता फेंकने की सुपारी दी गई हो। जिसके एवज में इस घटना को अंजाम दिया गया है, क्योंकि जो काम पत्रकार द्वारा किया गया है, वो कम से कम इतना महान तो नहीं है की इसके लिए उसे इनाम दिया जाए।
खैर, कारण चाहे जो भी हों, लेकिन जूते पर इनाम मिलने की परम्परा पुरानी है, ये बात अलग है की एक जगह जूते चुराने पर इनाम मिलता है, और दूसरी जगह मारने पर। लीबिया के सैनिक तानाशाह रहे गद्दाफी की बेटी आयशा गद्दाफी ने तो बुश पर जूता फेंकने वाले इराकी पत्रकार अल जैदी को मैडल ऑफ़ करेज से सम्मानित करने का फ़ैसला किया है। ये तो कुछ भी नहीं वेनेजुएला के राष्ट्रपति ने तो अल जैदी को बहादुरी के अवार्ड से नवाजने का निर्णय लिया है। अब जब इराकी पत्रकार जूता फेंकने पर इतना सम्मान पा सकता है तो क्या हमारे यहाँ के नेता लाख दो लाख भी खर्च नहीं कर सकते।
हाँ ये बात अलग है की अगर नेताओं ने कुछ ख़ास नही किया तो होम मिनिस्टर पर फेंका गया जूता जाया नहीं जायेगा। उसकी बोली कई कंपनियाँ खड़े खड़े लगाने को तैयार हो जाएँगी । हो सकता है की अब ये जूता और उसे बनने वाली कम्पनी एक ब्रांड के तौर पर उभर कर सामने आयें, क्योंकि बुश पर फेंके गए जूते की बोली 50 करोड़ लगायी गई है। ऐसे में भारतीय कंपनियाँ इतनी भी गई बीती नहीं की इस जूते की कीमत लाखों में न लगे।
बुश पर फेंके गए जूते की प्रतिकृति बनाकर उसे सम्मान सहित सद्दाम हुसैन के गृहनगर तिकरित में बाकायदा एक स्मारक में रखा गया है तो फिर भारतीय जूते का भी सम्मान जरूरी है। अब देखना है की इसे किस स्मारक में रखा जाता है, या फिर इसके लिए कोई नया शू म्यूज़ियम ही बनाया जाएगा।

3 comments:

तीसरा कदम said...

बस इतना ही कहूँगा ...
बेहतरीन

roop-patrakar said...

sahi kaha aapne ki is jute ke liye to musiam hi banwana padega kyunki mantri ji to wakya dekhkar kuchh kar bhi nahi sake bas muskura diye.
kehna nahin chahiye par... kyun itna wo muskura rahe they, wo kis gum ko chhipa rahe they.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

narayan narayan