एक ओर मंदी ने जहाँ निवेशकों को खून के आंसू रोने पर मजबूर किया है, वहीँ दूसरी ओर यही मंदी प्रमोटरों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है। जनवरी से लेकर अब तक शेयर बाज़ार में गिरावट के चलते कई कम्पनियों के शेयर अर्श से फर्श पर आ गए हैं, जिसका लाभ उठाकर प्रमोटर्स अपनी ही कम्पनियों के शेयर औने-पौने दामों में खरीद रहे हैं। इससे प्रमोटरों को एक तीर से दो शिकार करने का बेहतर अवसर भी मिल गया है। एक तो ये की उन्हें अपनी ही कम्पनी में अधिक से अधिक हिस्सेदारी बढ़ाने का मौका मिला है और दूसरा ये की इस कदम से वे अधिग्रहण जैसे बाहरी खतरों को भी टालने में सफल होंगे।
खैर जो भी हो लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में कहीं न कहीं बाज़ार नियामक यानि सेबी के नियम भी मददगार साबित हो रहे हैं। कुछ दिनों पहले ही सेबी ने क्रीपिंग एक्विजिशन यानि रेंगती हुयी खरीदारी की सीमा को 55 प्रतिशत से बढाकर 75 प्रतिशत कर दिया है। ऐसे में अब कम्पनियों के प्रमोटर्स अपनी ही कम्पनी के शेयर कम से कम दाम पर खरीदकर मंदी में भी चांदी काट रहे हैं। वैसे कम्पनियों के प्रोमोटर्स भी पहुँची हुयी चीज़ हैं, क्योंकि वे जानते हैं की जब उनकी कम्पनियों के शेयर वास्तविक कीमत से कम पर उपलब्ध हैं, तो क्यों न इस सुनहरे अवसर को भुनाकर कम्पनी में अपनी हिस्सेदारी बढाई जाए।
वैसे जो भी हो लेकिन प्रमोटरों द्वारा उठाये जा रहे इस कदम का फायदा कहीं न कहीं आम निवेशक को भी मिलेगा, क्योंकि आमतौर पर माना जाता है कि अगर प्रमोटर्स अपनी ही कम्पनी में हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं तो उन्हें अपनी योजनाओं और कम्पनी के भविष्य पर पूरा भरोसा है। इसके कारण कम्पनी के शेयरों की कीमतों पर सकारात्मक असर पड़ेगा, जिसका सीधा लाभ कम्पनी के शेयर धारकों को होगा। यानी कुल मिलाकर गलती से ही सही लेकिन प्रमोटर्स कहीं न कहीं निवेशकों के हितों का भी ध्यान रख रहे हैं।
1 comment:
बहुत बढ़िया. भाषा पर अच्छी पकड़ है. बिजिनेस जर्नेलिज्म के लिए. बहुत खूब
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