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Wednesday, January 28, 2009

आख़िर क्यों नहीं घटीं ब्याज दरें : मौद्रिक नीति


इस बार भी बैंकों और औद्योगिक संगठनों को रिज़र्व बैंक से काफ़ी उमीदें थीं, लेकिन तीसरी तिमाही की मौद्रिक नीति की समीक्षा में रिज़र्व बैंक ने प्रमुख दरों और अनुपात को यथावत रखते हुए सभी कयासों पर विराम लगा दिया। हालांकि अनुमान ये लगाये जा रहे थे की मुद्रास्फीति में कमी के चलते आरबीआई मौद्रिक नीति के उपकरणों की दरों में बदलाव करेगा। इन सब के बीच अब सवाल यह उठता है की आख़िर क्या कारण है की रिज़र्व बैंक ने ब्याज दरों में कोई परिवर्तन नहीं किया?
मंत्रालय और प्रधानमन्त्री कि आर्थिक सलाहकार परिषद् ने मार्च तक विकास दर के ७.५-८.० फीसदी रहने का अनुमान लगाया है, लेकिन रिज़र्व बैंक के अनुसार वित्त वर्ष की चौथी तिमाही तक विकास दर के घटकर 7 फीसदी रहने और महंगाई दर घटकर 3 फीसदी तक रहने का अनुमान है। कुल मिलाकर महंगाई दर के आंकडों में लगातार जारी गिरावट के चलते आरबीआई इस बात को लेकर आश्वस्त है कि महंगाई अब नियंत्रण में है और आने वाले समय में इसमे और सुधार होगा, लेकिन इन सबके बावजूद रिज़र्व बैंक जहाँ एक ओर विकास दर के नकारात्मक आंकडों का अनुमान लगा रहा है, वहीँ दूसरी ओर महंगाई दर में कमी के बावजूद ब्याज दरों में परिवर्तन न करने कि बात आसानी से गले नहीं उतरती है। शायद इसके पीछे एक कारण यह भी हो सकता है कि रिज़र्व बैंक का ध्यान अब महंगाई नियंत्रण की तुलना में आर्थिक विकास को गति देने की दिशा में अधिक है, लेकिन आरबीआई द्वारा बाज़ार में पर्याप्त तरलता उपलब्ध कराने के बावजूद कई बैंकों द्वारा ऋण पर ब्याज दरें कम ना करने के कारण कई क्षेत्रों में अब भी मांग की कमी बनी हुयी है। यही वजह है कि उसने बैंकों को साफतौर पर कह दिया है कि उन्हें लोन पर ब्याज दरें घटाना होंगी। गौरतलब है कि अर्थव्यवस्था में मांग और लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए केन्द्रीय बैंक ने सितम्बर से लेकर अब तक करीबन 3.88 लाख करोड़ रुपये बाज़ार में डाले हैं। लेकिन इन सबके बावजूद बैंकों के असहयोगात्मक रवैये के चलते ग्राहकों को कम ब्याज दरों पर कर्ज उपलब्ध कराने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए।
कुल मिलाकर रिज़र्व बैंक द्वारा फिलहाल मौद्रिक नीति की समीक्षा में ब्याज दरों में बदलाव न करने का एक कारण ये भी हो सकता है की आगामी लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद सरकार द्वारा राजकोषीय उपाय लागू कर पाना आसान नहीं होगा, ऐसे में अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए मौद्रिक नीति की आगामी समीक्षा में प्रमुख दरों में कमी देखने को मिल सकती है।

Friday, January 23, 2009

सत्यम को खरीदने की मची होड़


देश के सबसे बड़े कार्पोरेट घोटाले के रूप में सामने आई सॉफ्टवेयर कम्पनी सत्यम कम्प्यूटर्स को खरीदने की होड़ सी मची हुयी है। सत्यम में बेहतर भविष्य देख रही नामी-गिरामी कंपनियाँ इस मौके को हाथों-हाथ भुनाना चाहती हैं। यही वजह है की एक नहीं बल्कि कई कंपनियाँ इसे खरीदने की कतार में हैं। सत्यम को खरीदने में सबसे पहले दिलचस्पी दिखाने वालों में इंजीनियरिंग और निर्माण क्षेत्र की अग्रणी कम्पनी एल एंड टी इन्फोटेक रही, लेकिन सत्यम मामले की जांच के चलते कम्पनी ने अभी कोई अन्तिम फ़ैसला नहीं लिया है। हालांकि एल एंड टी ने सत्यम में अपनी हिस्सेदारी बढाकर १२ फीसदी कर ली है। आउटसोर्सिंग सेवाएं उपलब्ध कराने वाली कम्पनी आईगेट टेक्नोलॉजी और प्रमुख आईटी कम्पनी टेक महिंद्रा भी सत्यम के अधिग्रहण पर विचार कर रही हैं। इसके अलावा सत्यम की बीपीओ इकाई को खरीदने की दौड़ में क्वात्रो बीपीओ सॉल्यूशन भी शामिल हो गई है। एस्सार समूह की बीपीओ फर्म एजिस भी सत्यम के बिज़नस प्रोसेस आउट सोर्सिंग व्यापार को खरीदने का मन बना रही है।
कुछ प्राइवेट इक्विटी निवेशक भी सत्यम को खरीदना चाह रहे हैं, इसके लिए ये भारतीय आईटी कम्पनियों के साथ हाथ मिलाने के मूड में हैं। इनमें टैक्सस पैसिफिक ग्रुप और जनरल एटलांटिक जैसे पीई निवेशक भी शामिल हैं। ऐसा अनुमान है कि आईटी सेक्टर कि बड़ी कम्पनी पटनी कम्प्यूटर्स जनरल एटलांटिक की मदद कर सकती है। कुल मिलाकर कभी देश की चौथी सॉफ्टवेयर कम्पनी रही सत्यम को खरीदने का सुनहरा मौका कोई भी अपने हाथ से गंवाना नहीं चाहता। यही वजह है की कम्पनी की जांच पूरी हुए बिना ही उसके खरीदारों की कतार लगी हुयी है।
हालांकि फिलहाल कम्पनी ला बोर्ड और कार्पोरेट मंत्रालय ने बिना अनुमति सत्यम कम्प्यूटर्स की संपत्ति को बेचने पर रोक लगा रखी है।

Sunday, January 18, 2009

अब सेबी करेगा बही-खातों की जांच


भारत के एनरान घोटाले के रूप में चर्चित हो चुके सत्यम मामले के बाद सेबी की आँखें भी खुल गई हैं। इसी के चलते सेबी (भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड) अब अपने तरीके से कम्पनियों के बही-खातों की जांच करने पर विचार कर रहा है। कम्पनियों द्वारा तिमाही नतीजों की घोषणा के बाद उसके शेयरों के मूल्य में होने वाली अप्रत्याशित बढ़त तथा वे कंपनियाँ जिनकी एक या एक से अधिक सहायक कंपनियाँ हैं, उनके खातों की जांच अब सेबी स्वयं करेगा। पियर रिव्यू के तहत किसी दूसरी ऑडिट फर्म द्वारा खातों की जांच के बाद सेबी अपने स्तर पर उस कम्पनी की बैलेंस शीट जांचेगा, ताकि खातों में होने वाली वित्तीय गड़बडियों को रोका जा सके।

गौरतलब है की बही-खातों में बरती गई भारी अनियमितता के चलते ही सत्यम ने अपनी काल्पनिक संपत्ति को वास्तविक संपत्ति की तुलना में काफ़ी बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया। इसके साथ ही सत्यम के पूरे मामले का पटाक्षेप भी तभी हुआ, जब कम्पनी के प्रमोटर्स ने अपनी ही सहायक कम्पनियों (मेटास इन्फ्रा और मेटास प्राप) को खरीदने की पेशकश की। इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हुए सेबी अब असामान्य रूप से बढ़ने वाले कम्पनियों के शेयर और प्रमोटर्स की सब्सिडरी कम्पनियों पर कड़ी नज़र रखने जा रहा है। खैर देर से ही सही,लेकिन खातों में की गई राजू की कलाकारी ने सरकार ही नहीं बल्कि सेबी को भी कड़े मानक तय करने पर मजबूर कर दिया है।

Thursday, January 15, 2009

मंदी भी नहीं लगा सकी शौकीनों पर पाबंदी

यूँ तो गुजरे साल के शुरूआती दौर से ही मंदी ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया, लेकिन साल के मध्य तक यह पूरे श़बाब पर आ गई, और इसका कहर आज तक जारी है। अर्थव्यवस्था की वृद्धि में योगदान देने वाला शायद ही ऐसा कोई सेक्टर बचा हो, जिसे मंदी ने अपनी गिरफ्त में न लिया हो। आर्थिक मंदी के चलते जहाँ एक ओर विभिन्न क्षेत्र की कम्पनियों को मांग में कमी और नकदी की समस्या से दो-चार होना पड़ा वहीँ दूसरी ओर शौकीनों और उनके शौक को पूरा करने लिए उत्पाद बनाने वाली कम्पनियों के आगे तो मंदी की भी एक नहीं चली। जिन उद्योगों के आगे मंदी ने भी अपने घुटने टेक दिए वो कोई और नहीं बल्कि शराब और सिगरेट हैं। अगर शराब उद्योग के आंकडों पर गौर करें तो वर्ष 2007 के 12 फीसदी की तुलना में बीते साल इसकी वृद्धि दर 20 फीसदी के आसपास रही। शौकीनों के उस्ताद और "लिकर किंग" के नाम से मशहूर विजय माल्या का तो यहाँ तक कहना है की लिकर इंडस्ट्री मंदी प्रूफ़ है। तम्बाकू से बने उत्पाद और सिगरेट बनाने वाली नामचीन कम्पनी आईटीसी ने साल 2008 की पहली तिमाही की तुलना में दूसरी तिमाही में पाँच फीसदी की बढोत्तरी करते हुए मंदी में भी मुनाफा कमाया है।
मंदी से अप्रभावित रहते हुए जिस एक और सेक्टर ने धूम मचाई है, वो है प्लेजर इंडस्ट्री । प्लेजर इंडस्ट्री से आशय कंडोम और सेक्स सम्बन्धी उत्पाद बनाने वाली कम्पनियों से है, जिनकी बिक्री में पिछले साल की तुलना में भले ही ज्यादा फर्क न पड़ा हो, लेकिन मंदी के बावजूद शौकीन और आम लोगों में जागरूकता देखी गई। यही वजह रही कि इसकी मांग और बिक्री बनी रही।
मतलब मंदी के बावजूद भी ये वो सेक्टर हैं, जिनका प्रदर्शन साल 2007 की तुलना में बेहतर रहा है, और इसके पीछे कोई तर्क नहीं बल्कि सच्चाई है, कि लोग आज भी शौक और आदतों को लेकर कोई समझौता नहीं करना चाहते, चाहे फिर मंदी हो या महंगाई क्या फर्क पड़ता है।

Wednesday, January 14, 2009

आख़िर कैसे मिलेगा निवेशकों को न्याय?

पिछले कई सालों से फर्जी साख के आधार पर निवेशकों का पैसा डकार रही "सत्यम कम्प्यूटर्स" का भंडाफोड़ तो हो गया, लेकिन क्या इससे उन लोगों को न्याय मिलेगा जो अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई इस कम्पनी में इस विश्वास से लगाते रहे कि आगे चलकर उन्हें इसका बेहतर प्रतिफल मिलेगा। लंबे समय से खाताबही में फर्जीवाडा करते आ रहे सत्यम के चेयरमैन रामालिंगा राजू कि गिरफ्तारी तो निवेशकों का पैसा नहीं लौटा सकती। हालांकि मंदी और महंगाई से जूझ रहे आम निवेशकों को न्याय दिलाने के लिए सरकार अब हाथ-पैर मार रही है, इसी के चलते उसने सत्यम के नए बोर्ड का गठन किया है। इसके अलावा व्यावसायिक अपराधों की जांच करने वाली सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टीगेशन को भी सत्यम में हुयी वित्तीय अनियमितता की जांच करने को कहा गया है। बाज़ार नियामक सेबी और रजिस्ट्रार ऑफ़ कम्पनीज ने भी अब अपने-अपने स्तर पर सत्यम कि जांच शुरू कर दी है। लेकिन इन सबके बावजूद सत्यम में कर्ज के रूप में अपना पैसा निवेश करने वाले संस्थानों और निवेशकों को इस बात कि चिंता खाए जा रही है, कि जांच-पड़ताल और कानूनी कार्रवाई के बाद भी उनके उस पैसे के निकलने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे जिसे राजू पिछले कई सालों से ठिकाने लगाते आ रहे हैं। फिलहाल तो सरकार भी इस मामले पर कन्नी काटती नज़र आ रही है। कम्पनी कि साख बचाने और उसे आर्थिक सहायता प्रदान करने पर सरकार विचार तो कर रही है, लेकिन उसका कहना है कि कम्पनी में पैदा हुयी मुसीबतों और हालातों का अच्छी तरह जायजा लेने के बाद ही हम किसी नतीजे पर पहुंचेंगे। और तो और जब तक पूरी तरह से कम्पनी पर अपराध साबित नहीं हो जाता तब तक सरकार भी उसकी संपत्तियों को बेचकर ऋणदाताओं और निवेशकों का पैसा नहीं लौटा सकती। कुल मिलाकर कम्पनी के घोटालों और सरकार की जांच के बीच निवेशक को फिलहाल अपने पैसे लौटने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है।
ऐसे में सत्यम रुपी भंवर में डूब चुकी निवेशकों की कमाई और भारतीय कार्पोरेट सेक्टर की साख को बचाने के लिए सरकार को संतुलित और पुख्ता कदम उठाने की आवश्यकता है। साथ ही निवेशकों को भी थोड़ा धैर्य रखने की जरूरत है, क्योंकि "घोटालों की जांच में थोड़ा वक्त तो लगता है...

Tuesday, January 6, 2009

चीनी के बढ़ते दामों से सरकार चिंतित

आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए सरकार जहाँ एक और महंगाई को काबू करने में लगी है, वहीँ दूसरी ओर चीनी की कीमतों में हो रही बढोत्तरी परेशानी का सबब बनती जा रही है। सरकार की इस परेशानी को बढ़ाने में ट्रांसपोर्टर्स की हड़ताल ने तो जैसे कोढ़ में खाज का काम किया है।
पिछले कुछ महीनों से चीनी के दाम 20-21 रुपये/किलो चल रहे हैं, और आने वाले समय में इसके दाम 10 रुपये/किलो तक बढ़ सकते हैं। चीनी के दामों में हो रही बढोत्तरी से चिंतित सरकार अब कुछ कड़े कदम उठाने पर विचार कर रही है , जिसके चलते चीनी कम्पनियों को निर्यात के लिए रिलीज़ आर्डर का इस्तेमाल न करने की मनाही हो सकती है। इसके साथ ही सरकार रिलीज़ आर्डर सिस्टम के तहत होने वाले चीनी निर्यात पर भी नज़र रखेगी। जिसमे चीनी निर्यात के लिए खाद्य मंत्रालय से अनुमति लेने की जरूरत होती है। पिछले कुछ समय से चीनी के दामों में हो रही लगातार वृद्धि के कारण सरकार को यह कदम उठाना पड़ रहा है, ताकि निर्यात कम कर चीनी की आपूर्ति बढाई जा सके। बाज़ार में चीनी की पर्याप्त आपूर्ति होने पर उसके दाम में निश्चित रूप से कमी आएगी। लेकिन इन सब उपायों के बावजूद हाल ही में हुयी ट्रांसपोर्टरों की हड़ताल ने सरकार के मंसूबों पर पानी फेर दिया है, और ऐसे में चीनी की कीमत कम होने की उम्मीद कम ही है। खैर अब देखना ये है की आख़िर सरकार चीनी के निर्यात में कमी लाकर इसकी बढती हुयी कीमत पर कैसे काबू पाती है।

बीमा कम्पनियों को मिला नए साल का तोहफा


मंदी के चलते नए कस्टमर की किल्लत से जूझ रही बीमा कम्पनियों को राहत देते हुए इरडा (बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण) ने यूलिप योजनाओं पर लगने वाला साल्वेंसी मार्जिन घटा दिया है। यूलिप के लिए साल्वेंसी मार्जिन में हुयी कमी के कारण अब बीमा कंपनियाँ करोडों रुपये की बचत कर सकती हैं, इस बचत का उपयोग वो किसी अन्य जगह निवेश कर लाभ के रूप में भी कर सकती हैं। साथ ही बीमा कंपनियाँ इस बचत के माध्यम से अपनी दूसरी योजनाओं जैसे पेंशन प्लान, मेडीक्लेम आदि का विस्तार भी कर सकती हैं। इरडा द्वारा साल्वेंसी मार्जिन में की गई कमी से अब बीमा कम्पनियों को नए व्यवसाय में सुविधा होगी, क्योंकि उनके पास पूँजी की पर्याप्तता होगी। इसके अलावा कम्पनियों पर अतिरिक्त पूँजी प्रबंधन का दवाब भी घटेगा।
इस तरह नए साल में इरडा ने बीमा कम्पनियों को साल्वेंसी मार्जिन में कटौती का तोहफा दिया है। लेकिन बीमा कंपनियाँ अगर अपने ग्राहकों को अपनी योजनाओं में लिए जाने वाले अतिरिक्त चार्जेस (प्रभार) को कम करेंगी, तो इस तोहफे का लाभ उनके साथ-साथ उनके कस्टमर्स को भी मिल सकेगा। इसके साथ ही नए कस्टमर्स यूलिप प्लान्स की ओर आकर्षित भी होंगे। मतलब कुल मिलकर यह है की इरडा द्वारा मिली इस सौगात को बीमा कंपनियाँ अपने कस्टमर्स के साथ बांटकर अपने लाभ को बेहतर तरीके से भुना सकती हैं।