यूँ तो गुजरे साल के शुरूआती दौर से ही मंदी ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया, लेकिन साल के मध्य तक यह पूरे श़बाब पर आ गई, और इसका कहर आज तक जारी है। अर्थव्यवस्था की वृद्धि में योगदान देने वाला शायद ही ऐसा कोई सेक्टर बचा हो, जिसे मंदी ने अपनी गिरफ्त में न लिया हो। आर्थिक मंदी के चलते जहाँ एक ओर विभिन्न क्षेत्र की कम्पनियों को मांग में कमी और नकदी की समस्या से दो-चार होना पड़ा वहीँ दूसरी ओर शौकीनों और उनके शौक को पूरा करने लिए उत्पाद बनाने वाली कम्पनियों के आगे तो मंदी की भी एक नहीं चली। जिन उद्योगों के आगे मंदी ने भी अपने घुटने टेक दिए वो कोई और नहीं बल्कि शराब और सिगरेट हैं। अगर शराब उद्योग के आंकडों पर गौर करें तो वर्ष 2007 के 12 फीसदी की तुलना में बीते साल इसकी वृद्धि दर 20 फीसदी के आसपास रही। शौकीनों के उस्ताद और "लिकर किंग" के नाम से मशहूर विजय माल्या का तो यहाँ तक कहना है की लिकर इंडस्ट्री मंदी प्रूफ़ है। तम्बाकू से बने उत्पाद और सिगरेट बनाने वाली नामचीन कम्पनी आईटीसी ने साल 2008 की पहली तिमाही की तुलना में दूसरी तिमाही में पाँच फीसदी की बढोत्तरी करते हुए मंदी में भी मुनाफा कमाया है।
मंदी से अप्रभावित रहते हुए जिस एक और सेक्टर ने धूम मचाई है, वो है प्लेजर इंडस्ट्री । प्लेजर इंडस्ट्री से आशय कंडोम और सेक्स सम्बन्धी उत्पाद बनाने वाली कम्पनियों से है, जिनकी बिक्री में पिछले साल की तुलना में भले ही ज्यादा फर्क न पड़ा हो, लेकिन मंदी के बावजूद शौकीन और आम लोगों में जागरूकता देखी गई। यही वजह रही कि इसकी मांग और बिक्री बनी रही।
मंदी से अप्रभावित रहते हुए जिस एक और सेक्टर ने धूम मचाई है, वो है प्लेजर इंडस्ट्री । प्लेजर इंडस्ट्री से आशय कंडोम और सेक्स सम्बन्धी उत्पाद बनाने वाली कम्पनियों से है, जिनकी बिक्री में पिछले साल की तुलना में भले ही ज्यादा फर्क न पड़ा हो, लेकिन मंदी के बावजूद शौकीन और आम लोगों में जागरूकता देखी गई। यही वजह रही कि इसकी मांग और बिक्री बनी रही।
मतलब मंदी के बावजूद भी ये वो सेक्टर हैं, जिनका प्रदर्शन साल 2007 की तुलना में बेहतर रहा है, और इसके पीछे कोई तर्क नहीं बल्कि सच्चाई है, कि लोग आज भी शौक और आदतों को लेकर कोई समझौता नहीं करना चाहते, चाहे फिर मंदी हो या महंगाई क्या फर्क पड़ता है।
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