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Wednesday, August 6, 2008

तन्हाई

अजनबी शहर के अनजान रास्ते, मेरी तन्हाईयों पे मुस्कुराते रहे।
मैं बहुत देर तक यूँ ही चलता रहा, तुम बहुत देर तक याद आते रहे।

कुछ लोग ज़माने मैं ऐसे भी तो होते हैं, महफ़िल में तो हँसते हैं तन्हाई में रोते हैं।
जिनके लिए रातों की नींदे हम खोते हैं, वो अपने मकानों में आराम से सोते हैं।

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