आप सभी का स्वागत करता है...

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Tuesday, October 28, 2008

क्या घटेंगी पेट्रोल-डीजल की कीमतें?

अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें 17 महीने के निचले स्तर पर पहुँचने के बाद भी आख़िर पेट्रोलियम मंत्रालय पेट्रोल-डीजल के दाम क्यों नहीं घटा रहा है ? यह सवाल हर नागरिक के मन में जरूर उठ रहा होगा। इसी साल 147 डॉलर/बैरल के स्तर को छू चुका क्रूड अब 60 से 65 डॉलर/बैरल पर आ चुका है, लेकिन भारत सरकार की ओर से अब तक पेट्रोल की बढ़ी कीमतें घटाने पर कोई सकारात्मक और ठोस जवाब नहीं आया है। मंदी और महंगाई की मार झेल रहे उपभोक्ता को कच्चे तेल की कीमतों में कमी से एक आशा की किरण जगी है, लेकिन सरकार के कान पर अभी तक जूं नहीं रेंगी। यहाँ तक कि अब तो तेल कंपनियां भी कह चुकी हैं कि यदि क्रूड के दाम 70 से 75 डॉलर प्रति बैरल तक रहते हैं, तो उन्हें कोई घाटा नहीं होगा। लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार को ही अपना वादा याद नहीं है। जबकि पेट्रोलियम मंत्री ने ख़ुद एक बयान में कहा था कि अगर क्रूड का दाम 61 डॉलर/बैरल पर आएगा, तो हम पेट्रोल-डीजल कि कीमतों में कमी करेंगे। जहाँ तक विशेषज्ञों की बात है तो उनका कहना है कि आर्थिक उठापटक के बीच क्रूड के दाम में तेजी कि उम्मीद कम ही है, और अगर अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से कमजोर आर्थिक आंकडे आते हैं तो कच्चे तेल के दाम और नीचे जा सकते हैं। कुल मिलाकर सभी चीजें सकारात्मक हैं तो फिर आख़िर सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाने में इतनी देरी क्यों कर रही है? तेल की कीमतों में गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए तो बेहतर है, लेकिन ये बेहतरी तभी होगी, जब जनता के लिए पेट्रोल-डीजल के दामों में कमी की दरकार.....पूरी करेगी सरकार...

Sunday, October 26, 2008

बड़ी कंपनियों कि नज़र अब छोटी कारों पर

यदि आप कार लेने का मन बना रहे हैं तो अब आपको ज्यादा सोचने की जरूरत नही पड़ेगी। भारत में छोटी कारों के बड़े बाज़ार को देखते हुए कई ऑटो कंपनियों की नज़रें अब इनके निर्माण पर लगी हैं। यही कारण है कि टाटा की नैनो से लेकर आने वाले समय में कई जानी-मानी कंपनियां अपनी छोटी कारें बाज़ार में उतारने जा रही हैं। जहाँ तक अनुमान है की इस साल के अंत तक टाटा की नैनो सड़कों पर फर्राटा दौडेगी। वहीँ होंडा मोटर्स भी अगले साल के आखिरी तक अपनी छोटी कार मार्केट में उतरने का मन बना चुका है, और इसके लिए राजस्थान में तेज़ी से काम चल रहा है। हिंदुजा समूह का ब्रांड अशोक लेलैंड भी भारतीय बाज़ार में अपनी पकड़ बनने में लगा हुआ है और इसी के चलते छोटी कारों के निर्माण कि योजना बना रहा है। जापानी ऑटो कंपनी निसान मोटर्स भी वर्ष-2010 तक नेक्स्ट जेनरेशन कार "मार्च" लॉन्च करने का मूड बना चुकी है। शुरूआती चरण में इस कार का निर्माण थाईलैंड से होगा। लेकिन आगे चलकर कंपनी कार के कलपुर्जे और मेनुफेक्ट्चरिंग का काम भारत से ही करेगी। इसी साल ब्रिटेन कि ऑटो कंपनी फोर्ड मोटर्स भी भारतीय बाज़ार में अपनी छोटी कार उतारने का मन बना रही है। कंपनी भारत के ऑटोमोबाइल सेगमेंट में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहती है।

Friday, October 24, 2008

बाज़ार में छाया साईको फोबिया

आर्थिक मंदी और शेयर बाज़ार में लगातार जारी गिरावट के चलते अब निवेशक ही नहीं बल्कि आम आदमी के जेहन में भी यह सवाल कौंधने लगा है कि आख़िर कहाँ जाकर थमेगी ये मंदी और कब लौटेगी बाज़ार में रौनक। एक ओर हर तरह के उपाय करने के बाद भी मार्केट में लिक्विडिटी नहीं आ रही है, तो दूसरी ओर डॉलर के मुकाबले रूपया टूट रहा है। रिज़र्व बैंक द्वारा क्रेडिट पॉलिसी कि दूसरी तिमाही कि समीक्षा के बावजूद बाज़ार में मारकाट मची हुयी है। इसका एक कारण ये भी हो सकता है कि ब्याज दरों को स्थायी रखा गया है। हालांकि उम्मीद यही थी कि रेपो और सीआरआर की दरों में और कटौती होगी लेकिन रिज़र्व बैंक ने इस बार सभी आयामों को देखते हुए हर कदम फूँक-फूँक कर रखे हैं। बाज़ार में लिक्विडिटी बढ़ाने और बैंकों को नकदी देने के चक्कर में कहीं आरबीआई मुसीबत में न फँस जाए। इसके साथ ही केंद्रीय बैंक को बढ़ती हुयी महंगाई की चिंता भी तो सता रही है। अगर ब्याज दरों में अधिक कटौती कर दी तो कुछ हद तक महंगाई पर लगी लगाम फिर छूट सकती है। कुल मिलाकर सरकार और आरबीआई एक संतुलन बनाकर मंदी और महंगाई दोनों से लड़ने का उपाय तो कर रही हैं, लेकिन लोगों के मन में घर कर गए मनोवैज्ञानिक डर को दूर करने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है, यह विचारणीय है।

Wednesday, October 22, 2008

आईपीओ मतलब.......कोका-कोला

निवेशकों के लिहाज से वर्ष 2007 काफ़ी अच्छा रहा...जब मार्केट अपने पूरे शबाब पर था, लेकिन 2008 शुरू होते ही नतीजे एकदम उलट....निवेशकों ने होम किया और हाथ जले....अरे भई ये तो कहावत है...पर है बिल्कुल सच। लोगों ने सोचा शेयर मार्केट में सीधे घुसना रिस्की है.....तो चलो आईपीओ एक बेहतर विकल्प है...लेकिन भई जब ख़राब वक्त आता है...तो ऊंट पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट जाता है...और वही हुआ। 2008 में जितनी भी कंपनियों के आईपीओ आए वे अपने इश्यू प्राइस से नीचे ही खुले...और अगर किसी तरह वो शुरूआती दौर में ऊपर भी खुले तो मार्केट ने उन्हें अपने लपेटे में ले ही लिया। एक स्टडी के मुताबिक 123 में से 102 कंपनियों के भाव इश्यू प्राइस से भी नीचे हैं। हालात ये हैं...कि कुछेक कंपनियों का बाज़ार पूंजीकरण तो आईपीओ से जुटाई गयी रकम से भी कम हो गया है। इस मंदी ने किसी को भी नही छोड़ा.....चाहे फिर राजा हो या रंक...कहने का मतलब है कि नुकसान सिर्फ़ छोटी कंपनियां ही नहीं झेल रही हैं...बड़ी-बड़ी दिग्गज कंपनियां भी इसमे शामिल हैं....जिनका बाज़ार पूंजीकरण अरबों रुपये में हैं। आईपीओ बाज़ार का अंदाजा हम इसी बात से लगा सकते हैं...कि ऑइल इंडिया लिमिटेड ने फिलहाल आईपीओ लाने का इरादा टाल दिया है। कुल मिलकर लगता है कि आईपीओ मतलब कोका-कोला...

Sunday, October 19, 2008

निवेशक का निकला दिवाला

बाज़ार में जारी बवंडर और महंगाई ने दिवाली से पहले ही निवेशक का दिवाला निकाल दिया है। एक समय था जब आम आदमी तो आम बल्कि कुत्ते बिल्ली भी निवेश की बातें करने लगे थे। हालत ये थे की जिधर देखो उधर शेयर मार्केट में इनवेस्टमेंट की बातें। और हों भी क्यों ना....आखिर मार्केट भी तो ट्रांस रेपिड ट्रेन की तरह सरपट दौड़ रहा था। और हर कोई बाज़ार की इस तेजी का लाभ उठाना चाहता था। जिसे देखो वही बहती गंगा में हाथ धोने को तैयार था। डीमेट अकाउंट खुलवाने की होड़ सी लग गई थी, जिसे देखो वही शेयर बाज़ार में किस्मत आजमाने को बस नहा-धोकर तैयार था। नफे-नुक्सान के बारे में सोचे बिना बस उस पर तो बाज़ार की तेजी से पैसा कमाने का जूनून सवार था। शायद उसे यह भी भान नहीं की जिस काम को वो करने जा रहा है....वो भी एक वैध जुआं ही है। उसने तो बस भेडचाल में आकर अपनी गाढी कमाई से कुछ शेयर खरीदे तो कुछ म्यूचुअल फंड, किसी ने इसे यूलिप योजनाओं में लगाया। मतलब कुल मिलाकर ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में कुछ ने तो अपनी एफडी तोडकर तो कुछ ने बैंकों से क़र्ज़ लेकर शेयर मार्केट में हाथ आजमाए। लेकिन नतीजा वही निल बटे सन्नाटा और सिर मुंडाते ही ओले पड़ने वाली कहावत चरितार्थ हो गई.....कैसे ? अरे भई ऐसे की पैसा निवेश करते ही बाज़ार ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया....और निवेशकों को दिन में तारे नज़र आने लगे। लेकिन अब भी निवेशक मजबूती के साथ अडा रहा। उसे लगा की ये छोटी मोटी गिरावट तो लगी ही रहती है। अब हमेशा ही किसी का प्रदर्शन तो बेहतर नही होता न......यही सोचकर वह अपने मन को दिलासा देता रहा। लेकिन भइया इस बार शेयर मार्केट गिरगिट की तरह रंग नही बदल रहा था, बल्कि वह तो अपना असली रूप दिखा रहा था। अब अगर निवेशक ही उसकी मंशा नहीं समझ पा रहा था, तो इसमे भला मार्केट का क्या दोष। अरे भइया मैं कोई मार्केट का पक्षधर नहीं हूँ, पर मार्केट को पूरी तरह से दोषी ठहराना भी तो उचित नहीं है। अब अगर गुब्बारे में हवा भरती जाए.....भरती जाए.....तो आख़िर वो फटेगा ही और वही हुआ.....भी। खैर... आख़िर धीरे-धीरे ही सही अब निवेशक को मार्केट की चाल समझ आने लगी...और वो इससे निकलने या दूर रहने का मन बनाने लगा पर भई अब तो काफ़ी देर हो चुकी थी...और बाज़ार ने खूब मारकाट मचाई। या यूँ कहें की दिवाली से पहले ही मार्केट ने निवेशकों का दिवाला निकाल दिया। लेकिन हमारा निवेशक भी कम होशियार नही है...अब वह निवेश करने में फूँक-फूँक कर कदम रख रहा है...और रखे भी क्यों ना......दूध का जला हुआ, छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है।

मंदी की सुनामी में लुटे कुबेरपुत्र

अमेरिका में पैदा हुए आर्थिक संकट ने सारी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। भारतीय उद्योगपतियों की संतानें भी इससे अछूती नहीं हैं। जनवरी से लेकर अब तक जिस तरह से बाज़ार बेकफुट पर आया है, उसमे बड़े-बड़े धनकुबेरों की संतानें भी अपनी करोड़ों की संपत्ति स्वाहा कर चुकी हैं...पिछले दस महीनों में ये कुबेरपुत्र लगभग 5352 करोड़ रुपये गंवा चुके हैं। इनमें सबसे अधिक पैसा डी एल एफ के मालिक के पी सिंह की बेटी पिया ने गंवाए हैं। उन्होंने 3297 करोड़ रुपये हैं। जबकि उनके भाई तथा डी एल एफ के वाइस चेयरमैन राजीव सिंह 1586 करोड़ रुपये स्वाहा कर चुके हैं। यूनिटेक के मालिक रमेशचंद्र के पुत्र राजीव चंद्र ने इस मंदी रूपी सुनामी में 2930 करोड़ रुपये गंवाए हैं। रिलायंस के मालिक मुकेश अम्बानी की संतानें ईशा , आकाश और अनंत ने जहाँ 685 करोड़ डुबाये हैं, वहीँ अनिल अम्बानी के पुत्र जय और अनमोल ने भी अपने पापा की 137 करोड़ की पूंजी गँवाई। विप्रो के मालिक अजीम प्रेमजी के पुत्र रिषद प्रेमजी भी इस मामले में पीछे नहीं है। उन्होंने अब तक १४ करोड़ स्वाहा किए हैं...

Friday, October 17, 2008

सेंसेक्स बनाम सचिन

क्रिकेट की दुनिया में जीती-जागती किवदंती बन चुके सचिन ने आखिरकार लारा का रिकॉर्ड ध्वस्त कर ही दिया...लंबे समय से लोग ११९५३ आंकडे को पार करने की बाट जोह रहे थे...तो लो भई सचिन ने सबकी मुराद पूरी कर दी....पर भइया ये तो कुछ भी नही.....अपना सेंसेक्स भी आंकडे पार कर रिकॉर्ड तोड़ने में किसी से कम नहीं...तभी तो दिन-ब-दिन नए रिकॉर्ड बन रहे हैं...फर्क सिर्फ़ इतना है की सचिन रिकॉर्ड तोड़कर आगे बढ़ रहा है...जबकि सेंसेक्स रिवर्स गियर से पीछे आ रहा है...लेकिन भइया कहीं न कहीं दोनों में समानता तो है....कैसे ? वो ऐसे....कि एक समय था जब अपने सचिन सेंचुरी पर सेंचुरी लगा रहे थे....सेंसेक्स भी उन्ही का अनुसरण कर रहा था....और अब वो वक्त है...कि सचिन का बल्ला जब कभी बोलता है....तो अपना सेंसेक्स भी कभी-कभार सिर उठाता है...अपना शेयर बाज़ार तो पूरी तरह सचिन के नक्शे कदम पर चल रहा है...सचिन कभी गेंदबाजों के छक्के छुडाते थे...तो सेंसेक्स अब निवेशकों के...कुल मिलाकर दोनों का काम एक जैसा ही है...अब देखिये न उधर सचिन ने लारा का रिकॉर्ड तोडा तो इधर सेंसेक्स ने भी १० हज़ार का रिकॉर्ड तोड़ ही दिया...जिस तरह से सचिन के १९ साल के क्रिकेट जीवन में उतार-चढ़ाव आए...लगता है...सेंसेक्स भी अब उसी दौर से गुजर रहा है...पर भाई....जो भी हो....लगता है दोनों के ग्रह-गोचर समान हैं....अरे!!!!! भई राशि नाम का अक्षर भी तो वही है ना...

Friday, October 10, 2008

झुकी-झुकी सी नज़र...

झुकी-झुकी सी नज़र बेकरार है के नहीं...

दबा-दबा सा सही दिल में प्यार है के नहीं...झुकी-झुकी सी नज़र...

तू अपने दिल की जवां धडकनों को गिन के बता...

मेरी तरह तेरा दिल बेकरार है के नहीं....दबा-दबा सा सही.....

वो पल के जिसमे मोहब्बत जवान होती है...

उस एक पल का तुझे इंतज़ार है के नहीं...दबा-दबा सा सही....

तेरी उम्मीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को...२

तुझे भी अपने पे ये ऐतबार है के नहीं...दबा-दबा सा सही...

झुकी-झुकी सी नज़र....

चिट्ठी न कोई संदेश...

चिट्ठी न कोई संदेश, जाने वो कौन सा देश...जहाँ तुम चले गए...
इस दिल पे लगाके ठेस...जाने वो कौन सा देश...जहाँ तुम चले गए...

इक आंह भरी होगी, हमने न सुनी होगी...जाते-जाते तुमने आवाज़ तो दी होगी....
हर वक्त यही है ग़म, उस वक्त कहाँ थे हम...कहाँ तुम चले गए...

हर चीज़ पे अश्कों से लिखा है तुम्हारा नाम, ये रस्ते घर गलियां तुम्हे कर न सके सलाम...
हाय दिल में रह गई बात...जल्दी से छुडाकर हाथ कहाँ तुम चले गए....

अब यादों के कांटे इस दिल में चुभते हैं, न दर्द ठहरता है...न आंसू रुकते हैं...
तुम्हे ढूंढ रहा है प्यार...हम कैसे करें इकरार...के हाँ तुम चले गए...

फरियाद...

कोई फरियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे......
तूने आंखों से कोई बात कही हो जैसे...
जागते-जागते इक उम्र कटी हो जैसे...
जान बाकी है मगर साँस रुकी हो जैसे......
जानता हूँ.....आपको सहारे की जरूरत होगी....बस साथ देने आया हूँ...
हर मुलाक़ात पे महसूस यही होता है...
मुझसे कुछ तेरी नज़र पूछ रही हो जैसे...

राह चलते हुए अक्सर ये गुमा होता है...
वो नज़र छुपके मुझे देख रही हो....जैसे...

एक लमहे में सिमट आया हो सदियों का सफर...
ज़िन्दगी तेज़ बहुत तेज़ चली हो...जैसे...

इस तरह पहरों तुझे सोचता रहता हूँ मैं...
मेरी हर साँस तेरे नाम लिखी हो...जैसे...

Wednesday, October 8, 2008

आख़िर कब रुकेगी मंदी रुपी सुनामी...

विश्व भर में आई मंदी के चलते वित्तीय संस्थानों की माली हालत काफ़ी खस्ता हो चुकी है। हाल ही में दिवालिया घोषित हुए लेहमन ब्रदर्स उनमे से एक थी। इस वैश्विक मंदी का असर भारत में भी साफ़ दिखाई दे रहा है। बम्बई स्टॉक एक्सचेंज का संवेदी सूचकांक 21000 से लुढ़ककर 10700 के स्तर को भी छू चुका है। वर्ष के शुरूआती दौर से ही शेयर बाज़ार मंदी की मार झेल रहा है, लेकिन यह मंदी थमने का नाम नही ले रही है। कभी क्रूड आयल के उबलने से तो कभी डॉलर के बढ़ने से बाज़ार लगातार मंदी की चपेट में है। कुल मिलाकर तेजड़ियों पर मंदडिए हावी हैं, जिसके चलते कई शेयर ब्रोकर इस मंदी रुपी सुनामी की भेंट चढ़ चुके हैं। ये हालात भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में देखने को मिल रहे हैं। हाल ही में अमेरिका के एक ब्रोकर ने परिवार सहित आत्महत्या कर ली। अपने आप को विश्व का आका कहलाने वाला अमेरिका और अंकल सैम भी इस मंदी को रोकने में नाकाम साबित हो रहे हैं। हालांकि अमेरिकी सरकार ने इस मंदी रुपी सुनामी को रोकने के लिए 7 सौ अरब डॉलर का राहत पैकेज जारी किया है, लेकिन यह पैकेज 12 हजार अरब बिलियन डॉलर की जीडीपी वाले देश के लिए ऊँट के मुह में जीरे के समान है।