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Sunday, October 19, 2008

निवेशक का निकला दिवाला

बाज़ार में जारी बवंडर और महंगाई ने दिवाली से पहले ही निवेशक का दिवाला निकाल दिया है। एक समय था जब आम आदमी तो आम बल्कि कुत्ते बिल्ली भी निवेश की बातें करने लगे थे। हालत ये थे की जिधर देखो उधर शेयर मार्केट में इनवेस्टमेंट की बातें। और हों भी क्यों ना....आखिर मार्केट भी तो ट्रांस रेपिड ट्रेन की तरह सरपट दौड़ रहा था। और हर कोई बाज़ार की इस तेजी का लाभ उठाना चाहता था। जिसे देखो वही बहती गंगा में हाथ धोने को तैयार था। डीमेट अकाउंट खुलवाने की होड़ सी लग गई थी, जिसे देखो वही शेयर बाज़ार में किस्मत आजमाने को बस नहा-धोकर तैयार था। नफे-नुक्सान के बारे में सोचे बिना बस उस पर तो बाज़ार की तेजी से पैसा कमाने का जूनून सवार था। शायद उसे यह भी भान नहीं की जिस काम को वो करने जा रहा है....वो भी एक वैध जुआं ही है। उसने तो बस भेडचाल में आकर अपनी गाढी कमाई से कुछ शेयर खरीदे तो कुछ म्यूचुअल फंड, किसी ने इसे यूलिप योजनाओं में लगाया। मतलब कुल मिलाकर ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में कुछ ने तो अपनी एफडी तोडकर तो कुछ ने बैंकों से क़र्ज़ लेकर शेयर मार्केट में हाथ आजमाए। लेकिन नतीजा वही निल बटे सन्नाटा और सिर मुंडाते ही ओले पड़ने वाली कहावत चरितार्थ हो गई.....कैसे ? अरे भई ऐसे की पैसा निवेश करते ही बाज़ार ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया....और निवेशकों को दिन में तारे नज़र आने लगे। लेकिन अब भी निवेशक मजबूती के साथ अडा रहा। उसे लगा की ये छोटी मोटी गिरावट तो लगी ही रहती है। अब हमेशा ही किसी का प्रदर्शन तो बेहतर नही होता न......यही सोचकर वह अपने मन को दिलासा देता रहा। लेकिन भइया इस बार शेयर मार्केट गिरगिट की तरह रंग नही बदल रहा था, बल्कि वह तो अपना असली रूप दिखा रहा था। अब अगर निवेशक ही उसकी मंशा नहीं समझ पा रहा था, तो इसमे भला मार्केट का क्या दोष। अरे भइया मैं कोई मार्केट का पक्षधर नहीं हूँ, पर मार्केट को पूरी तरह से दोषी ठहराना भी तो उचित नहीं है। अब अगर गुब्बारे में हवा भरती जाए.....भरती जाए.....तो आख़िर वो फटेगा ही और वही हुआ.....भी। खैर... आख़िर धीरे-धीरे ही सही अब निवेशक को मार्केट की चाल समझ आने लगी...और वो इससे निकलने या दूर रहने का मन बनाने लगा पर भई अब तो काफ़ी देर हो चुकी थी...और बाज़ार ने खूब मारकाट मचाई। या यूँ कहें की दिवाली से पहले ही मार्केट ने निवेशकों का दिवाला निकाल दिया। लेकिन हमारा निवेशक भी कम होशियार नही है...अब वह निवेश करने में फूँक-फूँक कर कदम रख रहा है...और रखे भी क्यों ना......दूध का जला हुआ, छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है।

1 comment:

तीसरा कदम said...

बहुत जबरदस्त लिखा है. अच्छा व्यंग्य है. मंदी के चलते मुझे तो निवेशक अब अंधों में काने राजा ही नज़र आ रहे हैं.
बहुत अच्छा लिखा है. आप व्यंग्य लिखा करे. निवेदन स्वीकार हो.