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Friday, October 24, 2008

बाज़ार में छाया साईको फोबिया

आर्थिक मंदी और शेयर बाज़ार में लगातार जारी गिरावट के चलते अब निवेशक ही नहीं बल्कि आम आदमी के जेहन में भी यह सवाल कौंधने लगा है कि आख़िर कहाँ जाकर थमेगी ये मंदी और कब लौटेगी बाज़ार में रौनक। एक ओर हर तरह के उपाय करने के बाद भी मार्केट में लिक्विडिटी नहीं आ रही है, तो दूसरी ओर डॉलर के मुकाबले रूपया टूट रहा है। रिज़र्व बैंक द्वारा क्रेडिट पॉलिसी कि दूसरी तिमाही कि समीक्षा के बावजूद बाज़ार में मारकाट मची हुयी है। इसका एक कारण ये भी हो सकता है कि ब्याज दरों को स्थायी रखा गया है। हालांकि उम्मीद यही थी कि रेपो और सीआरआर की दरों में और कटौती होगी लेकिन रिज़र्व बैंक ने इस बार सभी आयामों को देखते हुए हर कदम फूँक-फूँक कर रखे हैं। बाज़ार में लिक्विडिटी बढ़ाने और बैंकों को नकदी देने के चक्कर में कहीं आरबीआई मुसीबत में न फँस जाए। इसके साथ ही केंद्रीय बैंक को बढ़ती हुयी महंगाई की चिंता भी तो सता रही है। अगर ब्याज दरों में अधिक कटौती कर दी तो कुछ हद तक महंगाई पर लगी लगाम फिर छूट सकती है। कुल मिलाकर सरकार और आरबीआई एक संतुलन बनाकर मंदी और महंगाई दोनों से लड़ने का उपाय तो कर रही हैं, लेकिन लोगों के मन में घर कर गए मनोवैज्ञानिक डर को दूर करने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है, यह विचारणीय है।

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